दोष | All Time | Poetry

 

यहां दोषी नहीं कोई, नहीं है दोष किसी का भी  

हमेशा दोष तेरा ही, नहीं है दोष कभी मेरा....



दोष....

जहां हो दोष अपना ही, वहां फिर दोष किसको दें  

चुना उसको यही है दोष, या फिर कुछ भी कहे वह भी 

उसे देखा जब उसने था, ख्याल कुछ यूं ही आया था

बहुत अच्छी ना थी लेकिन, बुरा उसको कहें फिर क्यों

वह कहते हैं बुज़ुर्ग अक्सर, हों जब महफिल में सारे सब

अगर मां-बाप अच्छे हों, तरबियत होती अच्छी है

तरबियत हो अगर अच्छी, तो फिर बच्चे बुरे कैसे 

सही है बात बिल्कुल यह , मगर कुछ हादसे ऐसे हैं 

बदल देते जो बातें सब, उसे ही दोष कहते सब 

चुना उसको तरबियत देख, मगर निकला भ्रम यह तो 

बिताना सारा जीवन अब, हंसी हो या दुखी हो वह

खुशी उसको बहुत है अब, मिला उसको है जब से वह 

ना वह उसको खुशी देती, यही तो दुख सभी को है 

नहीं यह दोष किसी का भी, इसे कहते हैं किस्मत वह

लकीरें जो हैं हाथों में, उसे कहते हैं किस्मत सब 

लकीरें तो हमें दिखती, मगर दिखती नहीं किस्मत 

लकीरें जो बनाते हैं, उसे कहते हैं कुदरत हम 

सभी कुछ सोच लेते हम, सभी कुछ देख लेते हम 

सही होता है जब तक सब, तो वाह वाही हमारी है 

बुरा जो हो कभी जाता, तो दोष देते हम किस्मत को 

ना समझे है कभी बंदा,ना दोषी खुद ना दोष उसका  

अंधेरी रात होती जब, नहीं चमके कभी जब चांद 

मगर नन्हे सितारे वह, चमकते हैं सदा झिलमिल  

उन्हीं नन्हें सितारों सी, यही उम्मीद हम करते

रहे वह भी सदा खुश ही, यही दिल से दुआ है अब 

-Little_Star






Comments

Popular posts from this blog

कहानी याद आती है | Best Poetry | Story

Dal Fry | दाल फ्राई | AG | Dal Fry Recipe

शाद अब्बासी (एक शख्सियत) भाग 2