कहानी याद आती है | Best Poetry | Story
कहानी याद आती है....
बड़े हो जाते हैं हम सब जब, बदल जाता बहुत कुछ है
मगर कुछ बात रहती हैं, हमेशा याद रहती वह
कभी फुर्सत से बैठें जब, वह बातें याद आती हैं
कहानी बन चुकी है जो, कहानी याद आती वह
ज़िन्दगी याद आती वह, ज़िन्दगी याद आती वह
मेरा प्यारा सा वह एक गांव, मेरे गांव का वह एक घर
भरा-पूरा घराना था, पति-पत्नी और बेटे चार
और एक बिटिया वह प्यारी सी
मुहब्बत से भरा वह घर, खुशी थी शादमानी थी
बहुत आसाईश भले ना थी, सुकून लेकिन वहां पर था
पिता और मां दोनों ही, कमाते घर चलाते थे
खर्चा घर का चल जाता, मगर पैसे ना बचते थे
ना झगड़ा था ना किच किच थी, सुकूं लेकिन वहां पर था
बड़े होते वह बच्चे और, बढ़ी फिर ज़िम्मेदारी भी
हुई एक-एक की शादी फिर, बहु आई दामाद आये
चला फिर सिलसिला यूं ही, बढ़ी फिर ज़िंदगानी वह
किलकारी गूंज उठी फिर, वह नाती और पोतों की
बढ़े खर्चे कभी किच-किच, कभी कुछ बात लगी रहती
मगर इन सब ही बातों में, मुहब्बत फिर भी थी कायम
सभी मिलकर ही रहते थे, वह खाना साथ ही पकता
और खाते साथ सभी भी थे, मां और बाप सभी खुश थे
इन्हीं चेहरों में एक चेहरा, जिसे वह मां जी कहते थे
संभाला था मुहब्बत से, हर एक रिश्ता जो था अपना
न्योछावर अपने जीवन को, किया जिसने था बच्चों पर
वह एक कच्चे मकान को आज, बनाया घर वह उसने था
बढ़ी थी ज़िन्दगी आगे, वह मां जी हो गईं बूढ़ी
वह कल पालने में खेलते जो, जवां अब हो रहे थे सब
बड़े बच्चों के बच्चे अब, बड़े सब हो रहे थे अब
अलग अब सोच सबकी थी, अलग थे मशवरे सबके
कोई पैसे उड़ाता था, कोई पैसे बचाता था
बहुत अब बात बदली सब, मिज़ाज बदला सभी का अब
इन्हीं शिकवे शिकायत से, बरकत उठ गई घर से
हर एक बेटा चला परदेस, रोज़ी अब कहां थी गावं
उड़े चिड़िया सब एक-एक कर,और घोंसला हो गया खाली
पुराना गांव का वह घर, बचे अब बूढ़ा-बूढ़ी बस
हर एक तिनका अब फैला था, सजाया था जिसे उसने
मुहब्बत और मेहनत से बनाया था जो आशियां उसने
परदेसी हो गये सब ही, बहुत पैसे की लालच में
कहां फिर याद रहता गांव, कहां के अब वह मां और बाप
नहीं मिलता था बच्चों को, समय इतना की कर लें बात
वह बूढ़ी मां जो आंगन में, मुबाईल रख के राह तकती
कोई बेटा जो कर दे फोन, नेटवर्क फिर रहे उसमें
घड़ी भर ही वह बच्चों से, दो बातें कर लूं चैन आये
कहां बजती है घंटी अब, कहां अब फोन आता है
वह पोते और पीती जो, लिपट सोते थे बचपन में
नहीं अब याद करते वह, सभी अब भूल गये बचपन
वह बूढ़ी मां पड़ी बिस्तर, गये वक्तों को याद करती
सिसकना उनका कमरे में, खामोशी तोड़ती हर दम
कोई मिलने जो आ जाए, पड़ोसी और रिश्तेदार
वही तारीफ बच्चों की, कोई शिकवा नहीं करती
छिपा जाती वह दर्द अपना, खुशी झूठी दिखा जाती
ना जाए बात कहीं पर भी, जो बातें घर की उनकी हैं
जो मां सब कुछ सिखाती है, पढ़ाती है लिखाती है
वही मां ना समझ होती, वही मां फिर गलत होती
उसी गांव में वह बेटी है, बुलाती है समझाती है
चलो चल कर रहो घर पर, मेरे अब साथ रहना आप
मगर कुछ रीत दुनिया की, अनोखी है निराली है
भला रहती है कोई मां, बेटी के घर कहीं पर भी
नहीं यह रीत दुनिया की, बुरा फिर लोग कहते हैं
जो मां रहती है बेटी पास, नहीं अच्छी है ऐसी मां
पिता देखे तमाशा है, नहीं कुछ कर वह सकता है
मिटा के सब कुछ वह अपना, खाली हाथ बैठा है
वह बूढ़ी आंख थर्राते हाथ, जुबां खामोश है बिल्कुल
नहीं कोई जवाब है आज, बीवी आंख से जो करती
कहां हैं अब वह बच्चे और, कहां है अब घमंड उनका
कभी जो चार बेटों पर, अकड़ता था और कहता था
मेरे अर्थी को कंधा चार, मेरे बेटे भी हैं चार
मगर वह बाप अब खामोश, निगाहें हैं खिला में अब
जो जीते जी मार दे मां बाप को, नहीं चाहिए वह कंधे चार
मेरे वह गांव का यह मंज़र नज़र आये कहीं पर ना
दुआ दिल से यही निकली, सितारा एक टूटा जब
बड़ी नएअमत हैं मां और बाप,समझ लें अब हम यह बात
-Little_Star (Anjum G)
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