अनजानी ख्वाहिश | दूल्हा बना है बेटा मगर बाप नहीं है साथ

झिलमिलाती रौशनी और हसीं चेहरे बहुत
दिल में कितनी रौशनी यह नहीं दिखते यहां.....



अंजानी ख्वाहिश.....

वह सजती है संवरती है, लगाती है वह झूमर भी 

पहनती है वह कपड़े सब, गरारा हो शरारा हो 

हंसी और खुशी सब ही दिखती है सभी उस की 

मगर वह दुख जो अंदर है नहीं दिखता कहीं पर भी 

बना दुल्हा अज़ीज़ बेटा भरी महफिल हंसी चेहरे 

मगर वह एक चेहरा जो यहां होता नहीं है वह 

सजी संवरी अकेली मां यहां सब कुछ संभाले है 

कभी चाहत यह दिल में थी बने दूल्हा मेरा बेटा 

मगर अरमान दिल के सब नहीं होते यहां पूरे 

हज़ारों ख्वाब बुनते हम ना जाने क्या-क्या सोचते 

मगर कुछ पल कभी हमको बहुत मजबूर कर देते 

जिसे कहते हैं कुदरत हम किस्मत वह लिखे ऐसी 

जिसे सपने में सोचा ना नहीं चाहा कभी दिल ने 

जवां बेटा बना दूल्हा नहीं है साथ वहां पर बाप 

अकेली मां करे है याद मगर ताबिश नहीं कोई  

चली है ज़िन्दगी सब की नहीं रूकता यहां कुछ भी  

मगर हर पल यहां दिल में बहुत कुछ टूट जाता है  

चमकती रात सजी महफिल हर एक चेहरा यहां चमके  

मगर वह एक सितारा जो कभी महफिल की जान होता 

नहीं है आज सितारा वह मगर उसकी दुआएं हैं

-Little_Star



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