Poems of parathas and Burgers | poetry | Burger Poetry | Burger Poems
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'पराठों की बारात'
आलू के पराठे कभी मेथी के पराठे
मूली के पराठे कभी गोभी के पराठे
पालक के पराठे कभी अजवाइन के पराठे
दाल के पराठे कभी चावल के पराठे
पनीर के पराठे कभी कीमा के पराठे
चिकन के पराठे कभी सब्ज़ी के पराठे
मिर्ची के पराठे कभी धनिया के पराठे
मशरूम के पराठे कभी चीज़ के पराठे
बचे खानों के पराठे कभी सरसों के पराठे
मक्खन के पराठे कभी सादे ही पराठे
पराठे ही यहां मिलते हर टाइप पराठे
कोई कहीं जाए तो लेकर यही पराठे
कोई जो घर आये बन जाए यही पराठे
आफिस कभी कालेज है साथ में पराठे
मिल जाए अगर चटनी वाह रे यह पराठे
किस्मत जिसे कहते, कहते उसे पराठे
चाहत जो सभी की हो कहते उसे पराठे
रिश्ते तो निभाते हैं हर दम यह पराठे
है भूख मिटाते भी हर दम यह पराठे।
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'पराठों का शहर'
याद आ रही है, बहुत याद आ रहे है
घर के पराठे, आलू के पराठे याद आ रहे हैं
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'बर्गर'
बर्गर ओ प्यारे बर्गर सबके यह प्यारे बर्गर
सूरत वह तेरी बर्गर और स्वाद वह तेरा बर्गर
मोटा और चटपटा है भाये हमें है बर्गर
महंगा कभी यह सस्ता मिलता है हमको बर्गर
मनको ललचाये बर्गर हो सामने जब भी बर्गर
खाये बिना तो मन को बेचैन करते बर्गर
करते हैं मस्त हमको यह प्यारे-प्यारे बर्गर
खा लें जो हम यह बर्गर अपनी तो मौज बर्गर
है जेब मगर यह हमको डांटे बहुत है बर्गर
खायें सभी हैं बर्गर जब भी दिखे यह बर्गर
राहों में मिलते जब भी मोटे से यह साहेब बर्गर
मन को ना चैन आये खाये बिना यह बर्गर
आलू कभी चिकन का खाते हैं हम जो बर्गर
आता मज़ा जो हमको भरता है पेट बर्गर
चाहत तू मेरी बर्गर ओ मेरे प्यारे बर्गर
तू तो है प्यार मेरा मेरी है जां तू बर्गर
सोचे हैं हम यह अक्सर तू भी क्या है बर्गर
जीते तो कैसे जीते तेरे बिना ओ बर्गर
जिस ने तुझे बनाया क्या खूब बनाया बर्गर
करते सलाम उसको और खूब हम खाते बर्गर
खाओ तो कितना खा लो भरता ना मन यह बर्गर
लेकिन जो खा के बैठो उठना हो मुश्किल बर्गर
जीते हैं खा के कितने तुझ को ओ मोटे बर्गर
मरते हैं हम तो तुझ पर ओ मेरे प्यारे बर्गर
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