शाद अब्बासी (एक शख्सियत) | भाग 3 | Shad Abbasi

यह ज़िन्दगी भी दी, बचपन दिया, शबाश दिया

मेरी हयात में खुशियों का आफताब दिया

मिलीं जो नेअमतें उन का नहीं हिसाब कोई 

इलाही शाद को तूने तो बेहिसाब दिया 

(शाद अब्बासी की किताब हुरफो नवां पेज नं 168)



तालीम में दिलचस्पी के साथ-साथ शाद अब्बासी को शायरी से भी लगाव था। अपने इसी शौक के चलते वह अक्सर शायरों के कलाम को पढ़ा करते।

अपनी शायरी के शुरुआती दौर को याद करते हुए शाद अब्बासी कहते हैं कि......

"मेरी उम्र तकरीबन चौदह साल की रही होगी। एक रोज़ अपने कमरे में बाआवाज़ बुलंद किसी किताब की नज़्म पढ़ रहा था। मेरे बड़े अब्बा मुहम्मद उमर साहेब अपने कमरे से सुन रहे थे। नज़्म सुनने के बाद मुझे बुलाया और कहा कि मेरे साथ चलो। मैं एक फरमांबरदार बेटे की तरह उनके साथ चल दिये। वह मुझे मुस्लिम हरीरी साहेब के पास ले गये। और उन से कहा कि इन से नज़्म सुनिए। मैंने उन्हें नज़्म के कुछ अशआर सुनाए। उन्होंने फरमाया रोज़ आया करो"।

शाद अब्बासी की इस बात से पता चलता है कि उनको बचपन से ही शेर-ओ-शायरी का शौक था। शायरी के शौक की वजह से ही उन के बड़े अब्बा उनको मुस्लिम अल हरीरी साहेब के पास ले गये। जहां पर सिर्फ शेर ओ शायरी ही होती रहती थी।

मुस्लिम हरीरी साहेब जो शेर-ओ-सुखन में उस्ताद की हैसियत रखते थे। बनारस में उनका नाम और मुकाम था। नये लिखने वाले उनसे अपनी शायरी पर इस्लाह लेते थे। उन्होंने शाद अब्बासी की सलाहियतों को पहचान लिया था। इसी वजह से उन्होंने शाद अब्बासी से कहा था कि रोज़ आया करो।

शाद अब्बासी कहते हैं कि.....

"मैं चंद रोज़ में घबरा गया, मेरी समझ में यह बात नहीं आई कि मैं यहां क्यों लाया गया हूं। लेकिन अंदर-अंदर शायरी का बुखार मेरे ज़ेहन को मुताअसिर कर रहा था। कभी-कभी एक दो शेर कह लेता"।

और इस तरह शाद अब्बासी धीरे-धीरे शेर-ओ-शायरी की दुनिया में ढ़लने लगे। 

पॉलिश के काम के साथ शाद अब्बासी ने अपनी कलम को भी ज़िंदा रखा। और वह बाकायदा अशआर कहने लगे।

शाद अब्बासी को शिक्षा की लगन बचपन से ही थी। अपने इसी लगन की वजह से शाद अब्बासी शायरी के साथ-साथ छोटे-छोटे मज़मून भी लिखने की कोशिश करते। उन के मदरसे के उस्ताद मुंशी अब्दुर्रहमान मुख्तसर उंवान पर उनसे मज़मून लिखवाते। और इसी तरह शाद अब्बासी आगे बढ़ते चले गये।

मेरी गज़ल में जो कुछ फिक्र व फन की खुश बू है 

मेरा कमाल नहीं आप की मुहब्बत है

(शाद अब्बासी की किताब हुरफ व नवां पेज नं 35)

शाद अब्बासी की शायरी के साथ-साथ अगर उन की शख्सियत की बात की जाए तो कहा जा सकता है कि वह एक बेहतरीन शख्सियत के मालिक थे। और इनकी इस शख्सियत के पीछे यकीनन इन के बड़ो का साथ और किरदार था जो उन्हें विरासत में मिला था।

वह कहते हैं ना कि विरासत में माल व जायदाद के साथ-साथ इखलाद-व- किरदार भी मिलते हैं तो शाद अब्बासी को बचपन से दीनी तालीम के साथ-साथ तमीज़ और तहज़ीब के वह दरस मिल गये थे। जिस को उन्होंने अपनी ज़िंदगी में हमेशा बाकी रहा। क्योंकि किसी इंसान की ज़ाहिरी शक्ल सूरत,उसका चाल-ढाल,उसके पहनावे के साथ-साथ उसके इखलाक और बात करने का अंदाज़ से एक शख्सियत मुकम्मल होती है। और यह सारी खसूसियात शाद अब्बासी में मौजूद हैं।

शाद अब्बासी की शख्सियत उनके पुरखों की दी हुई वह जायदाद थी। जिसे शाद अब्बासी ने हमेशा बनाये रखा। 

शाद अब्बासी के दादा मुहम्मद इस्माइल में दीनदारी के साथ नमाज़ की पाबंद भी थे। जिसका असर यह हुआ कि उनके तीनों बेटे दीन की तालीम से आरास्ता थे। उन के छोटे बेटे हाफ़िज़ मुहम्मद अब्बास को उन्होंने हाफिज़े कुरआन बनाया। वह पॉलिश के साथ-साथ मुहल्ले की मस्जिद में इमामत के फराऐज़ भी अंजाम देते थे।

घर में दीनदारी थी। और जिस माहौल में उनका बचपन गुज़रा। उसके निशानात आज भी उनकी ज़िंदगी में दिखते हैं।

उनकी दीनी शख्सियत का असर उनके मुनाजात में देख सकते हैं.....

अपनी उल्फत अपनी चाहत अपना डर दे या अल्लाह 

मेरे दिल की झोली में तू ईमां भर दे या अल्लाह 

ऐसी कोई चीज़ ना मांगूं जिस में तुझ से दूरी हो

हिक्मत व दानाई ही दे मुझे को गर दे या अल्लाह 

-शाद अब्बासी 

शाद अब्बासी की किताब नेवाएं फारां में आप देख सकते हैं कि उनके दिल में ईमान और खुदा का डर समाया हुआ है। वह अल्लाह से हिक्मत और दानाई मांग रहे हैं। मज़हबी फिक्र उनकी तहरीरों में साफ तौर पर देखी जा सकती है।

इसी के साथ शाद अब्बासी के रहन-सहन उनका खान-पान उनके हुलिये और लिबास की बात की जाए तो शाद अब्बासी गोरी रंगत, दरमियाना कद, हल्की जसामत, कुशादा पेशानी, गोल चमकती आंखें, चश्मा भी लगाते हैं। मुनासिब और खूबसूरत भवें, पलकें लम्बी, पतले होंठ, सफेद छोटी दाढ़ी और सिर पर चमकते बाल, धीमा और नर्म लहजा, कपड़े हमेशा नफीस पहनते। उन्होंने हमेशा एक जैसा लिबास पहना, यानि सफेद कुर्ता पाजामा और सिर पर सफेद गांधी टोपी ही पहना। उनके कपड़े हमेशा बेहतरीन होते। वह शादी ब्याह या उदबी महफिल या मुशायरे वगैरह में शिरकत करते तो यही लिबास ज़ेब तन करते। या यूं कहा जाए कि लिबास के मामले में उनकी शख्सियत साफ और सादगी पसंद है।

शाद अब्बासी बचपन से ही दुबले-पतले हैं। उनकी खोराक कम है। अच्छे खाने के शौकीन हैं। बचपन से ही कम खाने की आदत है। दाल और सब्जियां ज़्यादा पसंद करते हैं। मेवा और फल ज़्यादा खाते हैं। छिलके वाले फल और खजूर खाना ज़रूरी समझते हैं। पहले चाय का सेवन नहीं करते थे। लेकिन अब पी लिया करते हैं।

"शाद अब्बासी कहते हैं मैं कम खाना खाता हूं। लेकिन उम्दा और लज़ीज़ खाने पसंद करता हूं। दाल और सब्जियां ज़्यादा पसंद करता हूं। गोस्त तो कम ही खाता हूं। और कोशिश करता हूं कि उस हदीस पर अमल करूं कि एक लुकमा कम ही खाऊं। सूखे मेवे और फलों से ज़्यादा रगबत है"।

शाद अब्बासी सिगरेट और शराब से हमेशा दूर रहें। 

वह कहते हैं.....

"मेरे कुछ दोस्त शराब खाने जाते तो मैं भी उनके साथ चला जाता था। लेकिन कभी शराब को हाथ नहीं लगाया"।

शाद अब्बासी इन बेकार चीज़ों से हमेशा पाक-साफ रहे।

शाद अब्बासी के मिज़ाज की बात करें तो वह एक खुश मिज़ाज इंसान हैं। बात करने का अंदाज़ नर्म और लहजा धीमा होता है। मतानत, संजीदगी और मिज़ाज में शगुफतगी नज़र आती है। ज़रूरत भर बोलना, मिलनसार, छोटों से मुहब्बत बड़ों का लिहाज़ करना उनकी फितरत में शामिल है।

हम यह कह सकते हैं कि वह पुरकशिश शख्सियत और खुश मिजाज़ इंसान हैं।

जैसा कि आप ने पढ़ा कि शाद अब्बासी का ताल्लुक मदनपूरा से है। मदनपुरा अपनी दीनदारी खुश इखलाकी के साथ ही बनारसी साड़ी के लिए भी मशहूर है। जिस तरह बनारस की बनारसी साड़ी पूरी दुनिया में मशहूर है। उसी तरह मदनपुरा भी बनारसी साड़ियां बनाने के लिए मशहूर है।

मदनपूरा में घर का घर इस बनारसी साड़ी को बनाने में लगा रहता है। तानी बनाने से लेकर ऐसे बहुत सारे काम है जो घर के मर्दों के साथ-साथ औरतें और बच्चे भी करते हैं।

शाद अब्बासी का ताल्लुक भी मदनपुरा से है। और इनका खानदानी पेशा साड़ियों पर पॉलिश करना था। जो इन के घराने में पीढ़ियों से चला आ रहा था। शाद अब्बासी भी बचपन से ही हालात की मजबूरी की वजह से इस काम में लग गए थे। और मेहनत और मुशक्कत के आदी हो गए थे।

इस बारे में शाद अब्बासी लिखते हैं कि.....

"चूंकि पॉलिश का काम बहुत मेहनत तलब का होता है। इस लिए बचपन से ही मेहनत व मुशक्कत का आदी हो गया। ना तो किसी जायज़ काम को करने में आर महसूस की, और ना ही कभी मेहनत व मुशक्कत से घबराहट महसूस की। लेकिन पॉलिश का काम छोड़कर हमेशा तिजारत का मुतामन्नी था। इस लिए कई बार तिजारत शुरू की जिसमें नुकसान होता रहा। एक बार अपनी वालिदा मोहतरमा ने अपने तमाम चांदी के ज़ेवर मुझे दे दिया कि इसे फरोख्त करके कारोबार शुरू करो। मगर सब चला गया"।

शाद अब्बासी की इस बात से पता चलता है कि शाद अब्बासी को तिजारत का शौक था। और जिसके लिए उन्होंने मेहनत भी की, मगर वह नाकाम रहे। रुपया पैसा भी गंवाया। मगर हिम्मत नहीं हारी।

कहता है ज़माना, अजब शाद की फितरत

वह टूट तो जाता है बिखरता ही नहीं है 

-शाद अब्बासी 

जारी है.....

शाद अब्बासी (एक शख्सियत) भाग 4

शाद अब्बासी (एक शख्सियत) भाग 2




Comments

Popular posts from this blog

कहानी याद आती है | Best Poetry | Story

Dal Fry | दाल फ्राई | AG | Dal Fry Recipe

शाद अब्बासी (एक शख्सियत) भाग 2