शाद अब्बासी ( एक शख्सियत) भाग 4 | Shad Abbasi

 छलकी है आइने से तबस्सुम की एक किरन 
चेहरे पे माह व साल की तहरीर देख कर
दिल पर लगी खराश कोई याद आ गई 
रोया बहुत जवानी की तस्वीर देख कर 
-शाद अब्बासी 


वक्त आगे बढ़ता रहा। शायरी के साथ-साथ शाद अब्बासी अपने रोज़गार पर भी ध्यान देते रहे। और फिर उन्होंने पॉलिश का काम छोड़कर रविन्द्र पूरी भेलूपूर बनारस में एक ड्राई क्लीनिंग की दूकान 1964 में खोली। और उस दुकान का नाम मॉडर्न ड्राई क्लीनर्स रखा।

दूकान में बरकत हुई। खूब तरक्की की। इस की दूसरी ब्रांच भी बड़े पैमाने पर खोली गई। मगर चंद महीनों के अंदर ही उस नई दुकान में बड़ा नुक्सान हो गया। मजबूरन उन्हें नई दुकान को बंद करना पड़ा। लेकिन मॉडर्न ड्राई क्लीनर्स  तकरीबन बीस साल तक चलती रही। जो शाद अब्बासी के रोज़गार का जरिया रहा। और इसी से इन के घर में खुशियां आईं।

कहते हैं ज़िंदगी धूप और छांव का नाम है। मॉडर्न ड्राई क्लीनर्स के बगल में एक कसाब की दुकान थी। उसकी बुरी नज़र शाद अब्बासी की दुकान पर पड़ गई। जिस ने शाद अब्बासी का जीना मुहाल कर दिया। इतना सब करने के बाद भी वह कसाब रूका नहीं। बल्कि उल्टा उन पर मुकदमा दायर कर दिया।

जब भी अंधेरे आए हैं सूरज के दरमियां

होने लगा है मेरे इरादों का इम्तहां 

लगती है भरने कान मेरा आ के यह हवा 

बैठा हूं जब भी लिखने चिरागों की दास्तां 

(शाद अब्बासी की किताब बिखरे मोती पेज नं 176 से)

इस बात को शाद अब्बासी कुछ इस तरह लिखते हैं.....

"मेरी दुकान के करीब एक कसाई की दुकान थी। वह बड़ा दबंग आदमी था। उसने शाज़िस करके मुझे मुकदमें में फंसा दिया। वह जब भी मुझसे बातें करता, मेरे काउंटर पर पिस्तौल रख कर बातें करता। दूकान के ऊपर से उसने छत तोड़ दी। बरसात का ज़माना था। बारिश हुई तो सारे कपड़े बर्बाद हो गये। और मजबूरन वह मकान मुझे कसाई के हाथ फरोख्त करना पड़ा। इस वाकए ने पांच बरस तक मुझे ज़हनी तौर पर मफलूज कर दिया"। 

तफसील मेरे रख्ते सफर की बस यही 

हमराह मेरा साया है और ज़ख्म पाओं का

सूरज खड़ा है जब मेरी हिम्मत टटोलने

सिर पर मेरे दुआओं का एक साएबान था

शाद अब्बासी 

ज़िंदगी के नशेबो-फराज़ से गुज़रते हुए शाद अब्बासी ने एक बार फिर तिजारत करने का इरादा किया। घर की माली हालत बद से बदतर होती जा रही थी। शाद अब्बासी बनारसी साड़ी बनवाने लगे। 70/80 के दशक में बनारसी साड़ियों का काम उरूज़ पर था। हिन्दुस्तान के सभी इलाकों में खास तौर से शादियों में कतान की साड़ियों को पहनने का रिवाज था।

शाद अब्बासी के छोटे भाई हाजी अबू सईद ज़ो गोहाटी में रहते थे। उन्होंने शाद अब्बासी से कुछ खास किस्म की बनारसी साड़ियों का आर्डर दिया। शाद अब्बासी ने उनके मशवरे से साड़ियों को बनवाना शुरू किया। इस काम में खूब तरक्की होती गई। और आगे बढ़ने का रास्ता मिलता गया। उनके फर्म का नाम हाफ़िज़ साड़ी सेंटर था। वह इसी नाम से मशहूर भी हुए। लेकिन इस बार फिर किस्मत ने इनका साथ नहीं दिया। और इनको भारी नुक्सान उठाना पड़ा। जिसके बारे में शाद अब्बासी लिखते हैं कि.....

"एक बार फिर मुझे उस वक्त ज़बरदस्त झटका लगा, जब तकरीबन ढ़ाई,तीन लाख रूपये व्यापारी के यहां फंस गए।इस बुनियाद पर मक़रूज़ हो जाना लाज़मी है"।

शाद अब्बासी को कई बार कारोबार में परेशानियों और दुश्वारियों का सामना करना पड़ा। जिसका इनकी ज़िंदगी और रोज़गार पर गहरा असर पड़ा।

बहरहाल ज़िंदगी आगे बढ़ने का नाम है। अगर इंसान में कोशिश करने का जज़्बा और हिम्मत हो तो कितनी ही मुश्किलें क्यों ना आयें, इंसान आगे बढ़ ही जाता है।

शाद अब्बासी भी अपनी ज़िंदगी से लड़ते हुए आगे बढ़ रहे थे। 

शाद अब्बासी की शादी 1960 में मदनपूरा के मुअज़्ज़ि घराने की लड़की माजदा बीबी से हुई।

वह अहदे जवानी वह ख्यालों का तसादुम

वह इश्क के माहौल का अंदाज़ तकल्लुम

वह दश्त मुहब्बत में खिज़ा पर भी तबस्सुम 

काज़ी की सदा बन गई एक रोज़ तरन्नुम 

एक अजनबी चेहरा मेरे हमराह घर आया

देखा ना था जिसको कभी हो गया अपना

-शाद अब्बासी 

शाद अब्बासी की बीवी एक वफादार, हमदर्द और मुहब्बत का पैकर थी। 

शादी के बाद अपनी बीवी की खूबियों को शाद अब्बासी कुछ इस तरह लिखते हैं.......

वह उसकी निगाहों से सदा प्यार झलकना

चेहरे पे नज़र डालूं तो वह धीरे से हंसना

शर्मा के वह खुद अपनी ही हस्ती में समटना

कुछ कहना हो मुझ से तो लरज़ते हुए कहना

मशरिक के रवायात की वह एक निशानी 

जो खौल में तहज़ीब के रखती थी जवानी 

शाद अब्बासी ने अपनी शायरी से अपनी शरीक हयात की मुहब्बत और किरदार का बहुत ही बेहतरीन तरीके से बयान किया है।

शाद अब्बासी की बीवी ने हमेशा उन का साथ दिया। तिजारत में उतार-चढ़ाव होता रहा। लेकिन वह हमेशा उन के साथ खड़ी रही। मुश्किल वक्त में वह हमेशा उनके साथ रहीं। और सब्र के साथ उन्हें हौसला देती रहती।

शाद अब्बासी बताते हैं कि एक वक्त ऐसा गुज़रा कि रोज़मर्रा के सामान का भी इंतज़ाम बड़ी मुश्किल से होता था।

शाद अब्बासी उन हालात को याद करते हुए लिखते हैं कि.....

"मेरी वफाशुआर और नेक बीवी घर में बैठी इंतेज़ार 

करती रहती कि दुकान से पैसे आयें तो खाने का

इंतज़ाम हो। इसी इंतेज़ार में अक्सर रात हो जाया करती"।

बहरहाल वक्त गुज़रता रहा। देखते ही देखते शाद अब्बासी दस बच्चों के बाप बन गये। उन में चार बेटे और छः बेटियां हैं। 

शाद अब्बासी ने अपने सभी बच्चों को ज़ेवर तालीम से आरास्ता किया।

शाद अब्बासी के बड़े बेटे डॉक्टर सलमान रागिब पी-एच -डी हैं। दूसरे बेटे इफ्तेखार आदिल आलिम पोस्ट ग्रेजुएट हैं। तीसरे शैबतुल हमद पोस्ट ग्रेजुएट हैं। चौथे फारकलीत इशरत इंजीनियर हैं।

अपने बच्चों के बारे में शाद अब्बासी लिखते हैं.....

"अलहम्दुलिल्लाह मेरे चार बेटे हैं। सब औलाद वाले हैं। छः लड़कियां हैं, सब की शादी हो चुकी है और सब बाल-बच्चे वाली हैं"।

शाद अब्बासी 1994 में अपनी बीवी के साथ हज को गये। वापसी के चंद सालों के बाद उनकी बीवी लम्बी बिमारी के बाद अपने परिवार को रोता छोड़ इस दुनिया से चली गई। जिस का शाद अब्बासी के दिल पर बहुत गहरा असर हुआ। किसी अपने का इस तरह दुनिया से चले जाना उसके अपनों के लिए कितना तकलीफदेह होता है यह वही समझ सकता है जो उस दौर से गुज़र चुका है।

बहरहाल इसी का नाम ज़िंदगी है। किसी के आने-जाने से ज़िंदगी नहीं रूकती है। मगर दिल के दर्द इंसान को बेबस कर देते हैं।

शाद अब्बासी भी अपने हमसफर की याद को दिल में रख कर आगे बढ़ गये। उनकी मुस्कुराहट आज भी ज़िंदा है। मगर उनके अंदर कहीं कुछ बहुत ही रेज़ा है। उनका वह तन्हा दिल आज भी अपनी बीवी की याद से ज़िंदा है।

2006 में शाद शाद अब्बासी की किताब "नेवाएं फारां" को अपनी शरीके हयात के नाम करते हुए जिस तरह उसका इंतेसाब लिखते हैं वह पढ़ने और समझने के काबिल है।

जो कुछ इस तरह है......

"रफीके हयात

माजदा बीबी के नाम 

जो मेरे ज़ेहन में अब सिर्फ एक उजाला बन कर बाकी रह गई हैं।

जो मेरे रहवार कलब को ज़ुलमत आसूदा रास्तों से निकाल कर ज़िंदगी की रौशन व ताबनाक शाहेराह पर लगा गईं।

जो मेरे कदमों को अमल की राहों के लिए सबात अता कर गईं।

जो मेरी शायरी से खुश ना थी, इस किताब की कई ऐसी नज़्में हैं। जो उनकी फरमाइश पर कही गई हैं।

जो शायरा तो ना थी, लेकिन पढ़ी-लिखी थीं। और तवील तरीन मुनाजाती और इस्लामी नज़्में उन्हें ज़ुबानी थीं। जिन्हें वह रिक्कत के साथ फजर की नमाज़ के बाद हल्के सुरों में पढ़ा करती थीं।

जो अपने बच्चों को खुशहाल ज़िंदगी के साथ इलम की दौलत से मालामाल देखने की ख्वाहिश मंद थीं"।

शाद अब्बासी की बातों से पता चलता है कि उनकी शरीके हयात उनके साथ हर राह पर उनके साथ रहीं। मुश्किल की घड़ी में वह हमेशा उनके कदम बा कदम रही। 

वह जो किसी ने कहा है कि हर कामयाब मर्द के पीछे एक औरत का हाथ होता है। इस इंतेसाब से पता चलता है कि शाद अब्बासी की कामयाबी उनका फिक्र फन जिसे उन्होंने दुनिया के सामने पेश किया है। उसमें उनकी वफा शुआर बीवी का भी हाथ है।

मैं एक बार जहां बरक बन के चमका था

कटी हैं खुशियां लुटाते यह ज़िंदगी मेरी

-शाद अब्बासी 

सब ने दूसरी शादी का मशविरा दिया। मगर शाद अब्बासी ने अपने परिवार की खातिर दूसरी शादी नहीं की। क्योंकि उनका कहना था कि उस तरह उनका घर उनके परिवार को टूटने और बिखरने का डर है।

एक साथी की ज़रूरत होते हुए भी शाद अब्बासी ने अपने परिवार की खुशियों के लिए अपनी ज़िंदगी को नज़रंदाज़ कर दिया। 

अभी तो रोने का मौसम है मुस्कुराऊं क्या

मेरी हयात भी कागज़ की नाव जैसी है 

-शाद अब्बासी 

मिटना और सवंरना तो ज़िंदगी के खेल हैं। मगर अक्सर इस मिटने और सवंरने के खेल में जीत का जश्न अगर सब कुछ भुला देता है। तो वहीं हार हमें बहुत कुछ याद भी दिला देता है।

सांस चलती रही, सुबह शाम होती रही, ज़िंदगी गुज़रती रही, लोग मिलते रहे, मगर वह अंदर का जो खालीपन था, वह शायद ना भर सका।

इन्हीं शब्दों के साथ हम आगे बढ़ते हैं। और जानते हैं शाद अब्बासी के बारे में और भी बहुत कुछ, जो अभी बाकी है।

जारी है.....

शाद अब्बासी (एक शख्सियत) भाग 5

शाद अब्बासी (एक शख्सियत) भाग 3













Comments

Popular posts from this blog

कहानी याद आती है | Best Poetry | Story

Dal Fry | दाल फ्राई | AG | Dal Fry Recipe

शाद अब्बासी (एक शख्सियत) भाग 2