शाद अब्बासी (एक शख्सियत) भाग 8

 गूंज उठी हैं यहां अल्फाज़ की शहनाईयां 

दिल के वीरानों में अब होंगी चमन आराइयां

बन गई है खुश्क ज़हनों की ज़मीं भी गुल कदा

हो रही है सफहाए करतास पर गुलकारियां

-शाद अब्बासी 


आप ने पीछे पढ़ा कि समाज़ के बहुत ही मुअज़्ज़िन शख्सियतों ने शाद अब्बासी की शायरी और उनकी ज़िंदगी पर अपने विचार रखे। उसी सिलसिले में आगे बढ़ते हुए हम पढ़ते हैं कि ताजुद्दीन अशअर राम नगरी साहेब शाद अब्बासी के बारे में लिखते हुए कहते हैं......

"मुतावस्त कद, खुलता रंग, सफेद कुर्ता पाजामा, और सफेद गांधी टोपी में मलबूस, आंखों पर चश्मा और खशखशी सफेद दाढ़ी, यह अजमाली सरापा है। जनाब शाद अब्बासी के गुफ्तगू में किफायत शुआर, मद्धम आवाज़, शाइस्ता लब व लहजा, बर्ताव में सादगी, इंकेसार और खुलूस, यही सादगी और मतानतक के साथ सदाकत इन की शायरी की पहचान है"। 

एक और जगह पर शाद अब्बासी के लिए लिखते हुए ताजुद्दीन अशअर राम नगरी साहेब लिखते हुए कहते हैं कि......

"शाद अब्बासी की शायरी पर इज़हार ख्याल से पहले यह ज़रूरी मालूम होता है कि इन हमा-जहेत शख्सियत और इखलाक मुहासिन का थोड़ा सा ज़िक्र खैर हो जाए। जिन हज़रात को मौसूफ से दोस्ताना ताल्लुकात का शरफ हासिल है। वह सब इस बारे में मुत्ताहिदा ख्याल है कि मौसूफ खूलूस व मुहब्बत, वज़ादारी, इखलाक, शराफत, मतानत, संजीदगी और सादगी, इंकेसारी का पैकर हैं।

ताल्लुकात निभाने वाले हैं। जिस के सबब हर शख्स एक बार इन से मिलने के बाद इन के खुलूस व मुहब्बत का मोतरफ और गिरवेदा हो जाता है"।

शाद अब्बासी से मुतअल्लिक़ जनाब तरब सिद्दीकी साहेब कहते हैं......

"वह एक सादिक व साबिर, सच्चे और खुलूस व हमदर्दी से पुर इंसान हैं। तसनअ और बनावट ज़रा भी नहीं। ज़ाहिरी और बातिनी तौर पर एक जैसे हैं। और यूं कह लीजिए कि Simple living and high thinking रखते हैं"।


इसी कड़ी में आगे बढ़ते हुए हम स्वर्गीय जनाब डॉक्टर तारा चरन रस्तोगी (प्रिंसिपल बंगाली कालेज, हेलाका नदी, आसाम) जी के तास्सुरात जानते हैं जो उन्होंने शाद अब्बासी के बारे में कहे थे। जिस को हम कम शब्दों में यहां पर लिख रहे हैं।

"शाद अब्बासी के कलाम में ऐसी कैफियत मिलती है, जैसे कि इत्र मजमूआ में। अल्फ़ाज़ पर गिरिफ्त, जज़्बात व फिक्रयात का संगम, गर्ज कि सभी कुछ काबिले तारीफ है। इन की शायरी से लुत्फ अंदोज़ होते वक्त मुझे अपनी शदीद अलालत में अफाका सा मालूम हुआ"।

इन सब बातों से शाद अब्बासी की शख्सियत का अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि निहायत ही काबिले कद्र इंसान हैं। शाद अब्बासी एक आला ज़रफ इंसान हैं। माज़ी को याद करना, बनारस की तहज़ीब व तारीख और सखाफत पर तबसिरा, अपने आबा व अजदाद को याद करना, हाल और मुस्तकबिल पर गौर व फिक्र करना कि हमें किस तरह रहना चाहिए। और मौजूदा वक्त में क्या हो रहा है। इस तरह सोचते हुए वह अपने शब व रोज़ गुज़ार रहे हैं। 

शाद अब्बासी को अपने अइज़्ज़ा व अकारिब से काफी लगाव है। इन की खुशी व गमी में वह पेश-पेश व कोशा रहते हैं कि रिश्तों का लिहाज़ बाकी रखा जाए। बड़े-बुजुर्ग की खिदमत, और बीमार पड़ोसियों व रिश्तेदार की इयादत और शादी में किसी हंगामी हालात में जब सब लोग अपने घरों से निकल कर मदद करते हैं तो उन्हें बहुत अच्छा लगता है। जैसा कि एक नज़्म में वह कहते हैं......

रिश्तों का लिहाज़ वह आपस की मुहब्बत 

बच्चों पे मुहल्ले के बुजुर्गों की वह शफकत

वह बूढ़ी पड़ोसन का हर एक घर की अयादत

हंगामा तकरीब जवानों की वह मेहनत 

सब एक ही आवाज़ पर घर से निकाल आते हैं 

भारी हो अगर बोझ तो सब मिल के उठाते हैं 

-शाद अब्बासी 

इस तरह हम कह सकते हैं कि शाद अब्बासी एक हस्सास शख्सियत के मालिक हैं। इसी वजह से इनमें तअस्सुब, फिरका बंदी, जमाअती इखतेलाफ, बुगज़, कीना परवरी और इनाद नाम की चीज़ नहीं पाई जाती है। जिस तरह वह नमाज़ रोज़े में पाबंदी करते हैं। उसी तरह वह मज़हबी उसूल पर भी बहुत पाबंद और इंसाफ पसंद हैं।

जारी है.....

शाद अब्बासी (एक शख्सियत) भाग 9





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