शाद अब्बासी ( एक शख्सियत) | भाग1 | Shad Abbasi
कुछ ऐसा कर कि ज़माने की गुफ्तगू बन जाए
कुछ ऐसा लिख कि किताबों की आबरू बन जाए
तेरी तलाश हो तारीख के वर्क की तरह
तेरा वजूद तसव्वुर में मुश्क बू बन जाए
-शाद अब्बासी
गंगा किनारे बसा शहर बनारस अपने आप में मुकम्मल है।
बनारस और बनारस के लोगों के लिए बात करना अपने आप में एक आनंद है।
बनारस में जिधर देखो उधर आस्था, प्रेम, सुन्दरता और हुनर दिख जायेगा।
बनारस के घाटों की सुंदरता, गंगा का बहाव, कश्तियों का चलना, सुरज का निकलना हर चीज़ का अपना एक अलग महत्व और शान है। और इन्हीं बहुत सारी वजहों से बनारस बहुत खास है। और मशहूर भी है।
सुबह तो हर जगह होती है। मगर शहर बनारस की "सुबह बनारस" सारी दुनिया में मशहूर है।
"साहिले गंगा पे एक दिन मैं खड़ा था सुबहे दम
जलवये सुबह बनारस था बा-आगोशे इरम"
-शाद अब्बासी
शहर बनारस की गंगा जमुनी तहज़ीब यहां की संस्कृति यहां का खान-पान, यहां की कचौड़ी जलेबी हर चीज़ का एक अलग ही आनंद है।
वैसे तो बनारस का पान पूरी दुनिया में मशहूर है। मगर शहर के नुक्कड़ पर वह पान की दुकान, और वह खास अंदाज़ में पान बनाना, और उस पान को परोसने से लेकर खाने का अंदाज़ अपने आप में एक हुनर है।
शहर बनारस का नाम लिया जाए और बनारसी साड़ी का नाम ना आये। ऐसा भला हो सकता है। बनारस की बनारसी साड़ी अपने नाम के साथ पूरी दुनिया में मशहूर है। सुनते हैं शादी के जोड़े बनारसी साड़ी के बिना पूरे नहीं होते हैं।
शहर बनारस जो कि अपने नाम ही की तरह "बना" हुआ "रस" है। जिसमें कोई भी चीज़ मिलाने की ज़रूरत नहीं है। बनारस अपने आप में मुकम्मल है।
शहर बनारस के हर रस का अपना एक अलग ही आनंद है।
ऐ बनारस तेरे माज़ी की कहानी लिखूं
वाकेआत और हकीकत की ज़ुबानी लिखूं
सबत है गलियों में तेरी जो निशानी लिखूं
फिर से लौट आया तेरा अहदे जवानी लिखूं
-शाद अब्बासी
शहर बनारस अलग-अलग चीज़ो के साथ फंकारों और अदीबों का भी शहर रहा है।
शहर बनारस हमेशा से ऋषि मुनि अदीबो और फंकारों का शहर रहा है। यहां हर दौर में बेहतरीन कलाकारों और रचनाकारों ने जन्म लिया है।
शहर बनारस एक ऐसी जगह है। जहां पर बड़े-बड़े ऋषि मुनि,गुरूओं और महात्मा ने जन्म लिया है।
उर्दू ड्रामा के शेक्सपीयर आगा हश्र काश्मीरी ने भी यहीं पर जन्म लिया।
इस के इलावा कबीर दास, तुलसी दास, भारतेन्दु हरिश्चन्द्र, मुंशी प्रेमचंद ऐसी बहुत सारी महान हस्तियां हैं। जिन्होंने बनारस में जन्म लिया है।
तूने देखा है ज़माना यहां बलवंत सिंह का
कोई अब तक ना हुआ ज्ञान में तुलसी जैसा
भारतेन्दु था यहां इल्म का बहता दरिया
तेरी पेशानी पे गालिब ने है नक्शा खींचा
खटखटाया यहां जिस ने भी, खुला घर तेरा
शहर कोई नहीं जैसा है मुक़द्दर तेरा
-शाद अब्बासी
शहर बनारस में ऐसे बहुत से शायरों और अदीबों ने भी जन्म लिया है । जिन्होंने अपनी कलम से बनारस का नाम यहां के तहतीज़ व कल्चर को सारी दुनिया में पहुंचा दिया।
प्रोफेसर हनीफ नकवी, डाक्टर नाजिम जाफरी, डाक्टर सुलेमान आसिफ, नज़ीर बनारसी, हफीज़ बनारसी, मुस्लिम हरीरी, फायज़ बनारसी, शौक बनारसी, जौहर सिद्दीकी, शोरिश बनारसी और शाद अब्बासी यह वह नाम हैं। जिन्होने अपनी कलम से अपना और अपने शहर का नाम रौशन किया।
शहर बनारस में शाद अब्बासी का नाम किसी पहचान का मोहताज नहीं है। शाद अब्बासी ने अपनी कलम से अपने नाम का परचम लहराया है।
शाद अब्बासी अपनी सलाहियत को अल्लाह की इनायत और कलम को अपनी ताकत समझते हैं।
शाद अब्बासी ने अपनी कलम से खुद को ज़िंदा रखा। शाद अब्बासी की कलम उनकी बेहतरीन साथी है।
शाद अब्बासी की ज़िंदगी बचपन से लेकर बुढ़ापे तक खुशियों और दुखों का गहवारा रही।
शाद अब्बासी ने हर मुश्किलात का सामना किया। फिर चाहे वह सामाजिक हो, पारिवारिक हो या फिर कारोबारो हो। शाद अब्बासी ने ज़िंदगी के हर दौर को अपनी समझदारी, सूझबूझ और ईमानदारी से तय किया है।
शाद अब्बासी के इखलाक और मिलनसारी उनकी तआरूफ का जरिया रही है।
शाद अब्बासी अपने मां-बाप, भाई-बहन से मुहब्बत और इज़्ज़त देने के साथ ही साथ अपने बीवी और बच्चों के लिए हमेशा खुशियों की माला पिरोते रहे।
शाद अब्बासी..... बुढ़ापे की ओर बढ़ते कदमों के साथ उनकी आंखों में ज़िन्दगी और मौत के खेल बहुत ही साफ दिखाई देते हैं। ज़िन्दगी के वह खेल जो कभी उन के होंठों पर मुस्कान ले आये थे। तो उसी ज़िन्दगी ने उनके अपनों को उनसे छीन कर उनके आंखों को अश्क बार भी कर दिया था।
शाद अब्बासी..... ज़िन्दगी के नशेबो-फराज़ से झूझता हुआ यह शायर ज़िन्दगी की हर बाज़ी खेल गया। मगर ज़िन्दगी के इस खेल में इनकी खुशियों को तो बहुतों ने देखा। मगर इन के दुख के समय में इन के गम को समझने वाला ऐसा कोई नहीं था। जिसके कंधे पर सिर रख कर वह रो सकें।
सदियों से बेकरार है मेरी सज़ा मगर
मुझ से मेरा कुसूर बताया नहीं गया
( शाद अब्बासी की किताब हुरफो नवां पेज नं 79)
तंहाई के पलों को तन्हा जीने वाला यह शायर शाद अब्बासी अपने कलम से लफ्ज़ो के मोतियों को बिखेरता गया।
शाद अब्बासी ज़िन्दगी के हर तार को गुनगुना गये। मगर इन तारों के गुनगुनाने में इनके दिल कितनी बार ज़ख्मी हुए। यह शायद कम लोग ही जान पाए।
हंसता रहा हूं जब भी पड़ी है गमों की धूप
अब क्या गिला किसी को मेरी दास्तान से
-शाद अब्बासी
शाद अब्बासी के बारे में लिखने का सोचते ही आंखों के सामने उनका वह मुशफिक चेहरा, मंद-मंद मुस्कान, बात करने का अंदाज़, उनका इखलाक उनकी मेहमान नवाज़ी सब एक फिल्म की तरह आंखों में घूम जाते हैं।
शाद अब्बासी की ज़िन्दगी के नशेबो-फराज़ उनकी खुशियां उनके दुख, आंखों के सामने तैरते चले जाते हैं।
ज़िन्दगी के हर अय्याम को सब्र से गुज़ारने वाला यह शायर हर उस खाली पन्नों को अपने अल्फाज़ से रंग देता गया। जो बहुत वीरान हो गये थे। उन पन्नों पर अगर शाद अब्बासी अपने अल्फाज़ ना बिखेरते तो शायद यह शायर शाद अब्बासी गुमनामी की भीड़ में कहीं खो गया होता।
हम खुशी के फूल हैं गम के अंगारे भी हैं
डुबती रातों के हम टूटें हुए तारे भी हैं
है हमारी उम्र एक बाज़ीगरी की दास्तां
हम कभी जीते हैं बाज़ी और कभी हारे भी है
(शाद अब्बासी की किताब बिखरे मोती पेज नं 167)
छोटी-छोटी खुशियों में खुश होने वाले शाद अब्बासी अपनी मिलनसारी, मेहमान नवाजी और दरियादिली के लिए जाने जाते हैं।
शाद अब्बासी जब अपने बचपन, मां-बाप, भाई-बहन, पढ़ाई उस्ताद, बीवी-बच्चे, दोस्त रिश्तेदार अपनी शायरी और ज़िंदगी की बातें करते हैं तो उन के चेहरे पर उन दिनों के गुज़रे लम्हात और खुशी साफ दिखाई देती है। मगर अक्सर खुशियों के उन पलों में वह खो भी जाते हैं।
खो जाते हैं वह अपने अतीत में जहां कभी उन्हें अपने अम्मा अब्बा की शफकत और मुहब्बत याद आती है। तो कभी अपनी शरीके हयात (मरहूमा) के वह बेहतरीन बातें जो उन्हें ज़िन्दगी की नई राह दिखा गया। याद आती है उन्हें उनकी वह बातें जो उनकी ज़िंदगी को रौशन करके बहुत दूर चली गई।
मुहब्बत की वह एक मिसाल थी तो ममता का शाहकार थी। मगर अफसोस ममता और मुहब्बत का दरस देनी वाली उनकी जां निसार बीवी ज़िन्दगी के सफर में उन्हें तन्हा कर गईं।
ज़िन्दगी अगर इस मुकाम पर आकर ठहर भी जाती तो शायद शाद अब्बासी अपने दुखों पर खुशियों का लिबादा ओढ़ कर आगे बढ़ जाते। मगर कुदरत को कुछ और ही मंज़ूर था।
अभी इस शायर की आज़माईश बाकी थी। इस शायर की कलम एक बार फिर अश्क बार हो गई। जब इनका जवान बेटा डॉक्टर सलमान रागिब ज़िन्दगी की जंग हार गया। और इनको बिलखता छोड़ कर चला गया।
वह कल तक इल्म व फन की बज़्म में आ जा रहा था
ना जाने क्या हुआ मंज़र बदलता जा रहा था
मेरा होश उड़ गया, जब लड़ रहा था मौत से वह
जब होश आया तो उस का जनाज़ा उठ रहा था
-शाद अब्बासी
मौत का वह खेल शाद अब्बासी को मात दे गया।
मात दे गया शाद अब्बासी के उस गुरूर को, जो अपने बेटे डॉक्टर सलमान रागिब को देख कर उनके चेहरे पर छा जाता था।
आसान नहीं होता एक ऐसे बेटे को खोना, जो बाप की उंगली पकड़ कर उनको तरक्की की राह दिखाता हौसले हिम्मत और सब्र के साथ दूर बहुत दूर ले जा रहा था। जहां पर उसके वालिद शाद अब्बासी की मंज़िल थी।
मगर अफसोस बीच राह ही वह बिछड़ गया।
मिला कर कदम से कदम चल रहा था
ना जाने अचानक कहां खो गया व
मुझे शक है थक कर गमे ज़िंदगी से
अकेले में जाकर कहीं सो गया वह
-शाद अब्बासी
एक तनावर दरख़्त जिसके साये में बैठ कर शाद अब्बासी को सुकून और मुहब्बत मिलती थी। वह तनाआवर दरख़्त उनसे छीन लिया गया था। जिस तरह एक चिड़िया बहुत प्यार से तिनका-तिनका जोड़कर अपना घोंसला बनाती है। और एक तेज़ आंधी उस बने हुए घोंसले की बिखोर देती है। बिखेर देती है हर वह तिनका जिसे बहुत प्यार से बनाया गया था।
शाद अब्बासी के लिए उनके बेटे की मौत बिल्कुल उसी घोंसले के समान थी। उनका आशियाना बिखर गया था। तिनके फैले हुए थे। जिसे उन्हें एक बार फिर जोड़ना था।
तिनके तो जुड़ जाते हैं। आशयां भी बन जाता है। मगर वह टूटा हुआ दिल अपनी जगह खामोश रह जाता है। लेकिन उस दिल के लहू अक्सर तन्हाई में अश्कों के रूप में हमारी आंखों को नम कर जाते हैं। और भीग जाते हैं हमारे दामन उन अश्कों से जिन्हें हम बहुत सादगी से दुनिया की नज़रों से छुपा जाते थे।
चिरागे शब हैं, पिघलना हमारी फितरत है
हवाओं! लड़ना सम्हलना हमारी फितरत है
तुम अपने जबर का झोंका सम्भाल कर रखो
अंधेरी रात में जलना हमारी फितरत है
-शाद अब्बासी
मगर काबिले फख्र हैं शाद अब्बासी जो हादसों के सफर से गुज़रते हुए शिकवे को लब पर नहीं लाते। हर हाल में अल्लाह का शुक्र अदा करने वाला यह बंदा अपने खुदा की राह में सरे तसलीम है।
ऐ खुदा दर छोड़ कर तेरा किधर जायेगा शाद
तू अगर नाराज़ होगा तो बिखर जायेगा शाद
हो नज़र तेरी तो शोलों से गुज़र जायेगा शाद
तू अगर अपना बना ले तो सवंर जायेगा शाद
(शाद अब्बासी की किताब नेवाए फारानां पेज नं 40)
आज 84 बरस की उम्र में शाद अब्बासी अपने आफिस के काम के बाद अपने कमरे में तन्हा, उदास और खामोश बैठे मिल जायेंगे।
कितने दुःख दायी होते हैं यह पल, जब इंसान अपनों के लिए वक्त और हालात से लड़ कर, सब का मुस्तकबिल बना कर सब के दामन में खुशियां भर कर सुस्ताने के लिए बैठता है। तो वह बहुत तन्हा होता है। उस की आंखों में सिर्फ गुज़रे लम्हों की यादें होती है। जिसे सोचते हुए कभी उसकी आंख नम हो जाती है। तो कभी वह यादें उन्हें मुस्कुराहट दे जाती हैं।
शाद अब्बासी भी आज शायद ज़िन्दगी के उसी दौर से गुज़र रहे हैं। किसी से मिलते वक्त उनके चेहरे पर मुस्कान भले ही आ जाए। मगर उनकी आंखों से उनके दिल के दर्द साफ महसूस किये जा सकते हैं।
ऐसा लगता है उन्होंने "बहुत कुछ" खो दिया "कुछ" पाने के लिए। या यूं कहें कि "बहुत कुछ" पा के भी आज "कुछ" खो चुके हैं वह।
खैर..... समझने के लिए एक लफ्ज़ ही काफी है। ना समझने के लिए लफ़्ज़ों का ज़खीरा भी कम है।
ज़िंदगी की लुटी बहार हूं मैं
होश तो है मगर खुमार में हूं
रास्ते गम के कट गये सारे
अब तो मरने के इंतेज़ार में हूं
-शाद अब्बासी
बहरहाल शाद अब्बासी के ज़िंदगी की ऐसी बहुत सी बातें हैं। जिसे हमें जानना है।
शाद अब्बासी की ज़िन्दगी के पन्नों को पलटते हुए हम आगे बढ़ते हैं।
शाद अब्बासी का जन्म उनका बचपन, उनकी तालीम, उनका रोज़गार शादी बच्चे, उनकी शायरी उनका अदब, उनके ऐजाज़ में ऐसी बहुत सारी बातें हैं। जिससे अभी भी बहुत सारे लोग अंजान हैं।
एक शायर अपनी कलम से मुहब्बत के गीत लिख सकता है तो वही शायर अपनी शायरी से देश के लिए मर मिटने का जज़्बा भी दिल में पैदा कर देता है।
शायरी अगर खुशियों को ज़ाहिर करने का एक माध्यम है तो यही शायरी हमारे दुखों का मुदावा भी हैं।
फिक्र व शऊर की यह शुआएं भी थक गईं
लफ़्ज़ों की जुस्तजू में निगाहें भी थक गईं
करतास पर कलम के कदम जैसे रूक गए
अब ज़िंदगी की राह में सांसें भी थक गईं
(शाद अब्बासी की किताब बिखरे मोती पेज नं 149)
शाद अब्बासी के शायरी के गुलशन में अगर देश, दुनिया, वक्त, हालात, मौसम और मिजाज़ के रंग हैं। तो कहीं दुख की आंधी, और मुहब्बत के फूल भी हैं।
शाद अब्बासी की शायरी में मुनाजात, हम्द व सना, पैग़म्बरे इस्लाम से अकीदत और मुहब्बत भी दिखती है।
इलाही लिखेगा शाद जितना भी तेरी हम्द व सना में, कम है
यह टूटी फूटी सी चंद लफ्ज़े, ज़ुबां है खामोश आंख नम है
कहां से शायाने शान तेरे यह लाये अल्फ़ाज़, इस को गम है।
कहा है जो कुछ लिखा है जो कुछ, यह क्या है बस तेरा एक करम है
(शाद अब्बासी की किताब नवाएं फारां पेन नं 37)
शाद अब्बासी ने अपनी एक नअत में पैग़म्बरे इस्लाम से अकीदत का ज़िक्र कुछ इस तरह किया है.....
हर तरफ बारीकियां थी ज़ुल्म का तूफान था
अहमदे मुरसिल का ऐसे में सफीना आ गया
मिल गया ऐ शाद हमको नक्श पाये मुस्तफा
हम गुन्हेगारों को जीने का करीना आ गया
-शाद अब्बासी
जारी है......
शाद अब्बासी (एक शख्सियत) भाग 2
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