Shad Abbasi's Hindi Shayari part 1 | Shad Abbasi's Finest Poetry Collection – Heart-Touching Verses | शाद अब्बासी की बेहतरीन शायरी का संग्रह – दिल को छू लेने वाले अशआर
काटे ना कट रही थी हवा से दिये की लव
जलता रहा चिराग हवाओं में देर तक
-शाद अब्बासी
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कहता है ज़माना, अजब शाद की फितरत
वह टूट तो जाता है बिखरता ही नहीं है
-शाद अब्बासी
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चुप हैं यह तहरीरें लेकिन इक दिन तो लब खोलेंगी
आने वाली नस्लें अपने पुरखों को जब ढूंढ़ेंगी
-शाद अब्बासी
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हर वक्त फिक्र रहती है ऐ शाद बस यही
इसलाफ की ज़ुबान की लज़्ज़त ना हार जाऊं
-शाद अब्बासी
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तफसील मेरे रख्ते सफर की बस यही
हमराह मेरा साया है और ज़ख्म पाओं का
सूरज खड़ा है जब मेरी हिम्मत टटोलने
सिर पर मेरे दुआओं का एक साएबान था
शाद अब्बासी
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हंसते चेहरे पे दर्द का साया
आंखें कहती हैं रात रोई है
-शाद अब्बासी
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अशआर मेरे, बस मेरे जीवन की कहानी
कुछ रम्ज़, ना इसरार, ना लफ्ज़ो के ज़खीरे
-शाद अब्बासी
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कुछ ऐसा कर कि ज़माने की गुफ्तगू बन जाए
कुछ ऐसा लिख कि किताबों की आबरू बन जाए
तेरी तलाश हो तारीख के वर्क की तरह
तेरा वजूद तसव्वुर में मुश्क बू बन जाए
-शाद अब्बासी
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चेहरे का खद व खाल नेकाबों में खो गया
आबे रवां चमकते सराबों में खो गया
गुम हो गया हूं राग व तरन्नुम की भीड़ में
मैं ऐसा लफ्ज़ हूं जो किताबें में खो गया
-शाद अब्बासी
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गूंज उठी हैं यहां अल्फाज़ की शहनाईयां
दिल के वीरानों में अब होंगी चमन आराइयां
बन गई है खुश्क ज़हनों की ज़मीं भी गुल कदा
हो रही है सफहाए करतास पर गुलकारियां
-शाद अब्बासी
ऐ बनारस तेरे माज़ी की कहानी लिखूं
वाकेआत और हकीकत की ज़ुबानी लिखूं
सबत है गलियों में तेरी जो निशानी लिखूं
फिर से लौट आया तेरा अहदे जवानी लिखूं
-शाद अब्बासी
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साहिले गंगा पे एक दिन मैं खड़ा था सुबहे दम
जलवये सुबह बनारस था बा-आगोशे इरम"
-शाद अब्बासी
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तूने देखा है ज़माना यहां बलवंत सिंह का
कोई अब तक ना हुआ ज्ञान में तुलसी जैसा
भारतेन्दु था यहां इल्म का बहता दरिया
तेरी पेशानी पे गालिब ने है नक्शा खींचा
खटखटाया यहां जिस ने भी, खुला घर तेरा
शहर कोई नहीं जैसा है मुक़द्दर तेरा
-शाद अब्बासी
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सदियों से बेकरार है मेरी सज़ा मगर
मुझ से मेरा कुसूर बताया नहीं गया
शाद अब्बासी
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हंसता रहा हूं जब भी पड़ी है गमों की धूप
अब क्या गिला किसी को मेरी दास्तान से
-शाद अब्बासी
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मैं एक बार जहां बरक बन के चमका था
कटी हैं खुशियां लुटाते यह ज़िंदगी मेरी
-शाद अब्बासी
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हम खुशी के फूल हैं गम के अंगारे भी हैं
डुबती रातों के हम टूटें हुए तारे भी हैं
है हमारी उम्र एक बाज़ीगरी की दास्तां
हम कभी जीते हैं बाज़ी और कभी हारे भी है
शाद अब्बासी
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जब भी अंधेरे आए हैं सूरज के दरमियां
होने लगा है मेरे इरादों का इम्तहां
लगती है भरने कान मेरा आ के यह हवा
बैठा हूं जब भी लिखने चिरागों की दास्तां
-शाद अब्बासी
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छीन कर मेरे लब से दुआ ले गया
खींच कर जैसे कोई रिदा ले गया
जब बगावत मेरे पांव करने लगे
मेरे हाथों से कोई असा ले गया
-शाद अब्बासी
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वह कल तक इल्म व फन की बज़्म में आ जा रहा था
ना जाने क्या हुआ मंज़र बदलता जा रहा था
मेरा होश उड़ गया, जब लड़ रहा था मौत से वह
जब होश आया तो उस का जनाज़ा उठ रहा था
-शाद अब्बासी
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मिला कर कदम से कदम चल रहा था
ना जाने अचानक कहां खो गया व
मुझे शक है थक कर गमे ज़िंदगी से
अकेले में जाकर कहीं सो गया वह
-शाद अब्बासी
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चिरागे शब हैं, पिघलना हमारी फितरत है
हवाओं! लड़ना सम्हलना हमारी फितरत है
तुम अपने जबर का झोंका सम्भाल कर रखो
अंधेरी रात में जलना हमारी फितरत है
-शाद अब्बासी
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ऐ खुदा दर छोड़ कर तेरा किधर जायेगा शाद
तू अगर नाराज़ होगा तो बिखर जायेगा शाद
हो नज़र तेरी तो शोलों से गुज़र जायेगा शाद
तू अगर अपना बना ले तो सवंर जायेगा शाद
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ज़िंदगी की लुटी बहार हूं मैं
होश तो है मगर खुमार में हूं
रास्ते गम के कट गये सारे
अब तो मरने के इंतेज़ार में हूं
-शाद अब्बासी
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फिक्र व शऊर की यह शुआएं भी थक गईं
लफ़्ज़ों की जुस्तजू में निगाहें भी थक गईं
करतास पर कलम के कदम जैसे रूक गए
अब ज़िंदगी की राह में सांसें भी थक गईं
शाद अब्बासी
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इलाही लिखेगा शाद जितना भी तेरी हम्द व सना में, कम है
यह टूटी फूटी सी चंद लफ्ज़े, ज़ुबां है खामोश आंख नम है
कहां से शायाने शान तेरे यह लाये अल्फ़ाज़, इस को गम है।
कहा है जो कुछ लिखा है जो कुछ, यह क्या है बस तेरा एक करम है
शाद अब्बासी
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हर तरफ बारीकियां थी ज़ुल्म का तूफान था
अहमदे मुरसिल का ऐसे में सफीना आ गया
मिल गया ऐ शाद हमको नक्श पाये मुस्तफा
हम गुन्हेगारों को जीने का करीना आ गया
-शाद अब्बासी
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राज़े हयात भी मेरे दस्त हुनर में हैं
बीते दिनों के सारे मनाज़िर नज़र में हैं
बचपन से दश्त शौक में गुज़री है ज़िंदगी
कितनी कहानियां मेरे रख्ते सफर में हैं
-शाद अब्बासी
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यह ज़िन्दगी भी दी, बचपन दिया, शबाश दिया
मेरी हयात में खुशियों का आफताब दिया
मिलीं जो नेअमतें उन का नहीं हिसाब कोई
इलाही शाद को तूने तो बेहिसाब दिया
-शाद अब्बासी
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मेरी गज़ल में जो कुछ फिक्र व फन की खुश बू है
मेरा कमाल नहीं आप की मुहब्बत है
-शाद अब्बासी
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अपनी उल्फत अपनी चाहत अपना डर दे या अल्लाह
मेरे दिल की झोली में तू ईमां भर दे या अल्लाह
ऐसी कोई चीज़ ना मांगूं जिस में तुझ से दूरी हो
हिक्मत व दानाई ही दे मुझे को गर दे या अल्लाह
-शाद अब्बासी
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वह अहदे जवानी वह ख्यालों का तसादुम
वह इश्क के माहौल का अंदाज़ तकल्लुम
वह दश्त मुहब्बत में खिज़ा पर भी तबस्सुम
काज़ी की सदा बन गई एक रोज़ तरन्नुम
एक अजनबी चेहरा मेरे हमराह घर आया
देखा ना था जिसको कभी हो गया अपना
-शाद अब्बासी
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वह उसकी निगाहों से सदा प्यार झलकना
चेहरे पे नज़र डालूं तो वह धीरे से हंसना
शर्मा के वह खुद अपनी ही हस्ती में समटना
कुछ कहना हो मुझ से तो लरज़ते हुए कहना
मशरिक के रवायात की वह एक निशानी
जो खौल में तहज़ीब के रखती थी जवानी
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अभी तो रोने का मौसम है मुस्कुराऊं क्या
मेरी हयात भी कागज़ की नाव जैसी है
-शाद अब्बासी
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राज़े हयात भी मेरे दस्त हुनर में हैं
बीते दिनों के सारे मनाज़िर नज़र में हैं
बचपन से दश्त शौक में गुज़री है ज़िंदगी
कितनी कहानियां मेरे रख्ते सफर में हैं
-शाद अब्बासी
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मैं एहले इल्म की उल्फत ना भूल पाऊंगा
यह हम नशीनी, रिफाकत ना भूल पाऊंगा
मैं एक ज़र्रा हूं, सूरज के उन उजालो से
मिली है मुझ को जो इज़्ज़त ना भूल पाऊंगा
-शाद अब्बासी
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अहले ज़ुबां के घर की ज़ुबानें भी बिक गईं
हुरफो की शक्ल बदली तो लफ्ज़ भी बिक गईं
बेकार चीज़े रखती नहीं मेरी नस्ल भी
रद्दी के भाव उर्दू किताबें भी बिक गईं
-शाद अब्बासी
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हिफाज़त आप कीजिए खुद अपने जान व माल की
लिखा है आप के नगर में बस यही जगह-जगह
वह कैसे अब मिटाएगा सबूत अपने ज़ुल्म का
दमक उठे मेरे लहू की रौशनी जगह-जगह
उजाला हो सका ना दिल में जज़्बये खुलूस का
चिराग खुद नुमाई की है रौशनी जगह-जगह
-शाद अब्बासी
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रिश्तों का लिहाज़ वह आपस की मुहब्बत
बच्चों पे मुहल्ले के बुजुर्गों की वह शफकत
वह बूढ़ी पड़ोसन का हर एक घर की अयादत
हंगामा तकरीब जवानों की वह मेहनत
सब एक ही आवाज़ पर घर से निकाल आते हैं
भारी हो अगर बोझ तो सब मिल के उठाते हैं
-शाद अब्बासी
Shad Abbasi's Shayari Hindi (Part 2)
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ना थी अल्फाज़ की बंदिश ना कोई फन का पैमाना
मुकम्मल खुद को इल्मो आगही की राह में जाना
मेरी बातों पे अपनों ने तो तारीफों के पुल बांधे
गिनाई दुश्मनों ने खामियां तब खुद को पहचाना
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