शाद अब्बासी ( एक शख्सियत) | Part 6

  बात बनती नहीं ऐ शाद गिरां लफ्ज़ो से
शेर अच्छा है वही दिल को जो बेकल कर दे
-शाद अब्बासी 




शाद अब्बासी की पब्लिश किताबों के नाम.....

लफ्ज़ बा लफ्ज़...... नज़्मों का मजमूआ

सफीन-ए- गज़ल....... ग़ज़लों का मजमूआ

नेवाए फारानां........ नअत व मुनकबत

बिखरे मोती......... गज़लें, नज़्में और कतआत

मदनपूरा की अंसारी बिरादरी, समाजी पस मंज़र भाग 1 (नसर) 

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इस्लाही कहानियां...... बच्चों के लिए 

शादी रहमत या ज़हमत

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मदनपूरा की अंसारी बिरादरी समाजी पस मंज़र (हिंदी भाषा में)

हुरफो नवां....... गज़लें, नज़्में और कतआत

इस के इलावा शाद अब्बासी की अप्रकाशित पुस्तकों में "मदनपूरा की अंसारी बिरादरी भाग 3" और "गहर हाये गुमशुदा", जिस में बनारस के आठ मरहूम बुज़ुर्ग शोरा के हालात और नमूने कलाम का तज़किरा है। और एक किताब "आईनए बनारस" के नाम से उन्होंने तसनीफ की है। जिस में बनारस के तमाम बिरादरियों और फिरकों की रसूमात का ज़िक्र है। यह किताब 2013 में मुकम्मल हुए। कौमी कौनसिल बराये फरोग उर्दू ने इसे मंज़ूर भी कर लिया। यह किताब अभी तक छपी नहीं। और शाद अब्बासी की एक और किताब "अंदाज़े सुखन गोई" के नाम से लिखा है। जिस का सन् तसनीफ 2016 है। इस मसौदे को भी कौमी कौनसिल ने मंज़ूर कर लिया है। इस के इलावा शाद अब्बासी अपने उस्ताद शायर मुस्लिम अल हरीरी और उन के वालिद मरहूम के कलाम तरतीब दे चुके हैं। इसी के साथ शाद अब्बासी बनारस के हिन्दी कवियों की ज़िंदगी और शायरी पर भी काम कर रहे हैं। इन सब के साथ ही शाद अब्बासी के कलम थमें नहीं हैं। शाद अब्बासी के अल्फाज़ आज भी कागज़ पर अपने निशान छोड़ रहे हैं। जो आने वाले वक्तों में हमें एक सरमाये के तौर पर मिलेंगे।

जारी है......




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