शाद अब्बासी (एक शख्सियत) भाग 5 | Shad Abbasi

साये में सब रहने वाले, पहरों उन में जलता कौन
मेरे शोला राज़े फन से बिखरे मोती चुनता कौन
-शाद अब्बासी 


शाद अब्बासी की शायरी उनके कलाम और मुज़ामीन मुल्क के मुख्तलिफ किताबों और अखबारात में प्रकाशित हुए।

रोज़नामा कौमी मोर्चा में वह ईद कहां से लाऊं। जिस में उन्होंने बचपन की ईद की यादों का तज़किरा किया है। सालार बंगलौर कर्नाटक के संडे ऐडिशन में "रहीमा" जो लड़कियों के लिए इस्लाही कहानी पर मुशतमिल है। और "आम (टिकोर से अमावट तक)" जो एक मालूमाती मज़मून है। रोज़नामा आवाज़ मुल्क वाराणसी में"ईद वही खुशियां कम" इसमें उन्होंने बदलते हुए हालात का मुवाज़िना किया है। और "दीवाली" यह दीवाली से मुतअल्लिक़ मालूमाती मज़मून है।

इसी तरह शाद अब्बासी के कलाम छपते रहते। लेकिन कभी उन्होंने उसको बहुत संभाल कर नहीं रखा।

उनकी शायरी कागज़ के टुकड़ों, लिफाफों और अखबारात के पन्नों पर बिखरी हुई थी।

दोस्तों ने राय दी कि आप की शायरी का एक मजमूआ आना चाहिए। उन के मशवरों पर अमल करते हुए उन्होंने अपनी शायरी का ज़खीरा इकठ्ठा करके लफ्ज़ बा लफ्ज़ के नाम से नज़्मों का पहला मजमूआ 1999 में प्रकाशित हुआ। इस मजमूऐ में मुख्तलिफ टॉपिक से नज़्में, रूबायात और कतआत शामिल हैं।

शाद अब्बासी की दूसरी किताब 2002 में प्रकाशित हुई।जो मदनपूरा की अंसारी बिरादरी (समाजी पस मंज़र) है। 

शाद अब्बासी की तीसरी किताब "सफीनए गज़ल है। जो 2004 में प्रकाशित हुई।

शाद अब्बासी की चौथी किताब नेवाए फारां 2006 में प्रकाशित हुई। 

शाद अब्बासी की पांचवीं किताब "बात गज़ल की" 2007 में प्रकाशित हुई।

शाद अब्बासी की किताब बिखरे मोती 2014 में। इसके इलावा मदनपूरा की अंसारी बिरादरी हिस्सा दो, शादी रहमत या ज़हमत, इसलाही कहानियां आदि प्रकाशित हुई। इस के इलावा 2017 में हुरफो नवां नाम से किताब प्रकाशित हुई।

इसके इलावा शाद अब्बासी की अप्रकाशित किताबें भी हैं जो कि लिखी जा चुकी हैं। मगर अभी प्रकाशित नहीं हुई हैं। 

"शाद अब्बासी लिखते हैं कि जब भी मेरी कोई किताब मंज़रे आम पर आई मैंने समझा शायद यह मेरी आखरी किताब हो, लेकिन हर बार बच-बच जाता हूं। इस की वजह भी थी कि किताबें उस वक्त तबअ होना शुरू हुई, जब मेरी ज़िन्दगी नसफ से ज़्यादा सफर कर चुकी थी। मंज़िल के आसार नुमाया हो रहे थे। हर कदम पर यही खदशा लगा रहता था कि ना जाने कब यह रास्ते खत्म हो जाएं। लेकिन ज़िंदगी का सफर अभी जारी है। अल्लाह का लाख-लाख शुक्र है कि उस ने अदबी इमारत की ईंट पर ईंट रखने की ताकत और हिम्मत दी"। 

एक तरफ शाद अब्बासी अपनी उम्र के तकाज़े को देखते हुए मौत को याद कर रहे थे। वहीं कुदरत शाद अब्बासी की ज़िंदगी का रूख मोड़ने का सामान कर रही थी। 

डॉक्टर सलमान रागिब शाद अब्बासी का जवान होनेहार और फरमां बरदार बेटा जो इल्म व अदब की दौलत से मालामाल था। 

डॉक्टर सलमान रागिब में हर वह अच्छाई थी जो एक लायक बेटे में होनी चाहिए।

डॉक्टर सलमान रागिब ने ना सिर्फ तालीमी मैदान में अपने इल्म का परचम लहराया। बल्कि मां-बाप, भाई-बहन, दोस्त रिश्तेदार हर जगह हर रिश्ते को उन्होंने खुश इखलाखी, समझदारी और मुहब्बत से निभा कर अपना एक मुकाम बनाया।

मगर सलमान रागिब से मुहब्बत करने वाले यह नहीं जानते थे। उनका यह मोहसिन उनका अज़ीज़ बहुत जल्द उन सब को छोड़ कर चला जायेगा।

वह जो किसी ने कहा है ना कि वह जो अच्छे लोग जो हमें बहुत अज़ीज़ होते हैं। वह अच्छे लोग अल्लाह को भी बहुत अज़ीज़ होते हैं।

और फिर डॉक्टर सलमान रागिब लम्बी बीमारी के बाद सबको बिलखता छोड़ कर अपने मालिक हकीकी से जा मिले।

शाद अब्बासी के लिए उनके बेटे डॉक्टर सलमान रागिब की मौत एक ऐसी चोट थी। जो उनके दिल पर बहुत गहराई से लगी। शाद अब्बासी के लिए यह सदमा ऐसा था जिसे बर्दाश्त करना बहुत ही मुश्किल था। मगर वह कहते हैं ना कि कुदरत जब हमें कोई गम देता है। तो उसे बर्दाश्त करने के लिए हिम्मत भी वही देता है।

मगर उनकी हिम्मत टूट गई। उनके कदम ठहर गये। उनकी आंख अश्कबार हो गई।

उनकी कदम से कदम मिलाकर कर चलने वाला उनका लायक बेटा उन्हे बीच राह छोड़ कर चला गया था। 

शाद अब्बासी अपने दिल के किरचियों को एक बार फिर समेटते हुए अपने हर गम के साथ इस गम को भी दिल में सजा गये। 

आज ज़िंदगी के सफर में शाद अब्बासी अपने बेटे का लम्स अपने कंधों पर महसूस करते हुए आगे ज़रूर बढ़ रहे हैं। मगर अक्सर उनके आवाज़ की लिगज़िश और उन के कदमों की धीमी होती चाल अपने बेटे का साया ढूंढ़ती है, जो अंधेरे में भी उनके साथ खड़ा रहता था। मगर आज रौशनी के बावजूद वह नहीं दिखता है।

हंसते चेहरे पे दर्द का साया

आंखें कहती हैं रात रोई है 

-शाद अब्बासी 

एक जगह अपने बेटे डॉक्टर सलमान रागिब के बारे में शाद अब्बासी लिखते हैं.....

"मेरे बड़े बेटे डॉक्टर सलमान रागिब का 29 अक्टूबर 2019 बरोज़ मंगल दो बजे दिन इंतेकाल हुआ। इन्ना लिल्लाही वईन्ना इलैही राजिऊन, यह मेरे लिए एक ऐसा सानेहा था, जिस का अंदाज़ा सिर्फ मैं ही लगा सकता हूं। बेटे, भाई, बाप, मां तो सब के वफात पाते हैं। लेकिन एक ऐसा बेटा जो बाप की अदबी ज़िंदगी, अदबी तखलीकात को उजागर करने, अकादमीयों से तआवन के सिलसिले में मुआविन रहा हो। उस की मौत से शाहराहे ज़िंदगी पर ना उम्मीदी और मायूसी के काले बादल छा जाना मेरे लिए एक मौत का हुक्म है। उस की दो साल की अलालत के दौरान उस की सेहतयाबी की दुआएं करता रहा। अब उस की मौत के बाद आखरी सांस तक दूसरे बिछड़े हुओं के साथ उस की मगफिरत की दुआएं करनी है। ऐसी औलाद की मौत को इंसान भूल सकता है, लेकिन उस की ज़िंदगी की सरगर्मियां, उसकी फरमां बरदारियां, उस की खिदमात, असा बन कर थर्राते हुए कदमें को तकवियत पहुंचाना, एक बाप कैसे भूल सकता है"।

छीन कर मेरे लब से दुआ ले गया 

खींच कर जैसे कोई रिदा ले गया

जब बगावत मेरे पांव करने लगे

मेरे हाथों से कोई असा ले गया

-शाद अब्बासी 

शाद अब्बासी के यह अल्फाज़ सिर्फ पढ़ कर ही हम दुखी हो जाते हैं तो फिर हम समझ सकते हैं कि शाद अब्बासी पर क्या गुज़र रही होगी। 

बहरहाल इन अल्फ़ाज़ों के साथ हम शाद अब्बासी की ज़िंदगी में आगे बढ़ते हैं। और शाद अब्बासी की ज़िंदगी को जानते हैं।

चेहरे का खद व खाल नेकाबों में खो गया

आबे रवां चमकते सराबों में खो गया

गुम हो गया हूं राग व तरन्नुम की भीड़ में 

मैं ऐसा लफ्ज़ हूं जो किताबें में खो गया।

(शाद अब्बासी की किताब बिखरे मोती पेज नं 157)

किसी की शख्सियत पहचानने के लिए यह भी देखा जाता है कि उसके मरासिम व रवाबित किस से हैं। और उसके मुसाहिबीन कौन हैं। इस सिलसिले में शाद अब्बासी का जायज़ा लेते हैं तो देखते हैं कि उन के ताल्लुकात और दोस्त अहबाब अक्सर व पेशतर पढ़े-लिखे और काबिले ज़िक्र हैं। जैसे जनाब मुफ्ती अबुल कासिम नोमानी साहेब, प्रोफेसर हनीफ अहमद नकवी साहेब, प्रोफेसर आफताब अहमद आफाकी साहेब, प्रोफेसर अब्दुल हक, जनाब ताजुद्दीन अशअर राम नगरी, प्रोफेसर नसीम अहमद, प्रोफेसर याकूब यावर वगैरह। इन लोगों ने शाद अब्बासी की किताबों पर अपने अपने ख्यालात का इज़हार किया है। और सिर्फ मुबारक बाद ही पेश नहीं किया है, बल्कि कई मौकों पर इन हज़रात ने शाद अब्बासी की रहनुमाई भी की है।

इस के इलावा बहुत सारे लोग ऐसे भी हैं। जो शेर व शायरी से दिलचस्पी भी रखते हैं। इन से शाद अब्बासी का गहरा ताल्लुक है जैसे शोरिश बनारसी, अरसद सिद्दीकी, तरब सिद्दीकी, इम्तेयाज नदीम, नातिक बनारसी और बख्तियार नवाज़ के नाम काबिले ज़िक्र हैं।

इन के इलावा देश और विदेश में शाद अब्बासी के ताल्लुकात हैं। इन ताल्लुकात की खास वजह  यह है कि वह उर्दू ज़ुबान व अदब के लिए हमेशा फिक्र मंद रहे।

इन सब बातों से हम यह कह सकते हैं कि शाद अब्बासी की शख्सियत काबिले कद्र है। और उन्हीं के अल्फ़ाज़ में जो उन्होंने अपने लिए लिखे हैं। 

"मैं अपने अशआर की तौसीफ या अपनी नज़्म गोई की बरतरी वाज़ह करके खुद को सात सवारों में शामिल कर रहा हूं, अगर मुझ पर इन राहों में थोड़ी धूल भी जम जाए तो खुद को खुश नसीब समझूं"।

  जारी है......

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