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Showing posts from August, 2024

कर्ज़ दार | Debtor | The Debt That Can Never Be Repaid

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कर्ज़ दार.... यह क्या बेटा, सना ने तुम से पैसे मांगे और तुम ने दे दिये। सलमा बीबी ने नाराज़गी से अपने बेटे हामिद से कहा। वह बीवी है मेरी, उस को ज़रूरत होगी तभी उस ने पैसे मांगे। वरना वह क्यों लेगी पैसे। हामिद ने नाराज़गी से कहा। बहुत छूट दे रखी है तुमने, ऐसा ना हो कि बाद में पछताना पड़े। सलमा बीबी अभी भी नाराज़ थी। मगर खामोश रह गई। लेकिन उन्हें अपने बेटे हामिद को इस तरह अपनी बीवी को पैसे देना बिल्कुल भी पसंद नहीं था। अम्मी मैं थोड़ा बाज़ार जा रही हूं। घर का कुछ सामान लेना था। खाना बना कर टेबल पर रख दिया है। अगर मुझे देर हो तो आप लोग खा लेना। सना ने सास को देखते हुए कहा। ठीक है मैं देख लूंगा। तुम जाओ।  हामिद ने उसको पैसे देते हुए कहा। हामिद जब बहू बाहर जाने लगती है तुम इसको पैसे दे देते हो। कभी हिसाब भी लेते हो कि इस ने उन पैसों का क्या किया? आज फिर बहू को इस तरह पैसे देते देख सलमा बीबी नाराज़ हो गईं। अम्मी यह घर का ज़रूरी सामान लेने जा रही है। और यह बीवी है मेरी,  इस घर की मालकिन।  कोई मुलाज़िमा नहीं जिस से मैं हिसाब लूंगा। हामिद ने सना को देखते हुए कहा। जो ज़ख्मी नज़रों ...

Khwaab | ख्वाब

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ख्वाब... चलो आज हम मनाते हैं उन यादों को ख्वाबों को  जो हैं रूठे और बेगाने बढ़ाते हाथ हम भी आज भुला कर सब वह नादानी  मगर अफसोस यह दुनिया  और इस दुनिया के वह कुछ लोग हर बढ़ते हाथ झटक देते हर खुलते लब को सिल देते कुछ बातें कह ही जाते वह कदम उठते ही थम जाते जुड़ी हिम्मत फिर टूट जाती कदम पीछे फिर हट जाते मिलन की वह चाहत फिर  दिल ही दिल में रह जाती नहीं उम्मीद फिर कोई  ज़िंदगी यूं ही जी लेंगें नहीं ख्वाहिश कोई बाकी  सितारा आज टूटा फिर  दुआ लब पे ना थी कोई  -Little_Star

शाद अब्बासी (एक शख्सियत) | Part 9 | Shad Abbasi

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ना थी अल्फाज़ की बंदिश ना कोई फन का पैमाना  मुकम्मल खुद को इल्मो आगही की राह में जाना मेरी बातों पे अपनों ने तो तारीफों के पुल बांधे गिनाई दुश्मनों ने खामियां तब खुद को पहचाना (शाद अब्बासी की किताब गुल कारियां पेज नं 89 से) शाद अब्बासी को उनकी अदबी खिदमात पर कई अवार्ड से नवाज़ा गया। सबसे पहला अवार्ड उन्हें 18 अगस्त 2001 में "काशी रत्न अवार्ड" जागरूक युवा समीति वाराणसी की तरफ से बेहार के मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव के हाथों दिया गया। दूसरा अवार्ड "निगार बनारस" 2006 में कमिश्नर सी ऐन दूबे के हाथों मदर हलीमा सेन्टर स्कूल की तरफ से नवाज़ा गया। फिर उसके बाद "शोरिश बनारसी अवार्ड" 6 दिसम्बर 2016 को मिला। इस के इलावा इनकी उदबी ख़िदमात के लिए बंगलौर कर्नाटक के मोमिंटो से नवाज़ा गया।  लोग कहते हैं....शाद अब्बासी शायरी  और "कामिल शफीकी अवार्ड" जौनपुर से मिला। इस के इलावा इनके इल्मी और उदबी ख़िदमात के लिए मोमिंटो से नवाज़ा गया। शाद अब्बासी को उत्तर प्रदेश उर्दू अकादमी की तरफ से भी सम्मानित किया जा चुका है। जहां पर उन्हें अवार्ड के साथ एक लाख रूपये का चेक भी...

शाद अब्बासी (एक शख्सियत) | Part 8

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 गूंज उठी हैं यहां अल्फाज़ की शहनाईयां  दिल के वीरानों में अब होंगी चमन आराइयां बन गई है खुश्क ज़हनों की ज़मीं भी गुल कदा हो रही है सफहाए करतास पर गुलकारियां -शाद अब्बासी  आप ने पीछे पढ़ा कि समाज़ के बहुत ही मुअज़्ज़िन शख्सियतों ने शाद अब्बासी की शायरी और उनकी ज़िंदगी पर अपने विचार रखे। उ सी सिलसिले में आगे बढ़ते हुए हम पढ़ते हैं कि ताजुद्दीन अशअर राम नगरी साहेब शाद अब्बासी के बारे में लिखते हुए कहते हैं...... "मुतावस्त कद, खुलता रंग, सफेद कुर्ता पाजामा, और सफेद गांधी टोपी में मलबूस, आंखों पर चश्मा और खशखशी सफेद दाढ़ी, यह अजमाली सरापा है। जनाब शाद अब्बासी के गुफ्तगू में किफायत शुआर, मद्धम आवाज़, शाइस्ता लब व लहजा, बर्ताव में सादगी, इंकेसार और खुलूस, यही सादगी और मतानतक के साथ सदाकत इन की शायरी की पहचान है"।   एक और जगह पर शाद अब्बासी के लिए लिखते हुए ताजुद्दीन अशअर राम नगरी साहेब लिखते हुए कहते हैं कि...... "शाद अब्बासी की शायरी पर इज़हार ख्याल से पहले यह ज़रूरी मालूम होता है कि इन हमा-जहेत शख्सियत और इखलाक मुहासिन का थोड़ा सा ज़िक्र खैर हो जाए। जिन हज़रात को मौसूफ स...

शाद अब्बासी (एक शख्सियत) | नोट

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चेहरे का खद व खाल नेकाबों में खो गया आबे रवां चमकते सराबों में खो गया गुम हो गया हूं राग व तरन्नुम की भीड़ में  मैं ऐसा लफ्ज़ हूं जो किताबें में खो गया। (शाद अब्बासी की किताब बिखरे मोती पेज नं 157) किसी की शख्सियत पहचानने के लिए यह भी देखा जाता है कि उसके मरासिम व रवाबित किस से हैं। और उसके मुसाहिबीन कौन हैं। इस सिलसिले में शाद अब्बासी का जायज़ा लेते हैं तो देखते हैं कि उन के ताल्लुकात और दोस्त अहबाब अक्सर व पेशतर पढ़े-लिखे और काबिले ज़िक्र हैं। जैसे जनाब मुफ्ती अबुल कासिम नोमानी साहेब, प्रोफेसर हनीफ अहमद नकवी साहेब, प्रोफेसर आफताब अहमद आफाकी साहेब, प्रोफेसर अब्दुल हक, जनाब ताजुद्दीन अशअर राम नगरी, प्रोफेसर नसीम अहमद, प्रोफेसर याकूब यावर वगैरह। इन लोगों ने शाद अब्बासी की किताबों पर अपने अपने ख्यालात का इज़हार किया है। और सिर्फ मुबारक बाद ही पेश नहीं किया है, बल्कि कई मौकों पर इन हज़रात ने शाद अब्बासी की रहनुमाई भी की है। इस के इलावा बहुत सारे लोग ऐसे भी हैं। जो शेर व शायरी से दिलचस्पी भी रखते हैं। इन से शाद अब्बासी का गहरा ताल्लुक है जैसे शोरिश बनारसी, अरसद सिद्दीकी, तरब सिद्दीकी, ...

गूंज | Short Story | मां की अहमियत पर प्रेरणादायक कहानी | Mother's Love Inspirational Story in Hindi

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अब्दुल भाई ज़रा जल्दी से कोई सस्ते में अच्छा मोबाइल दिखा दें।  दानिश ने जल्दबाजी दिखाते हुए अब्दुल भाई से कहा। लाल चौक पर अब्दुल भाई की दुकान सदाबहार है। उनका काम तो दर्ज़ी का है। जो वह अपने अब्बा से सीखते हुए आज खुद कर रहे हैं। अब्दुल भाई इंसान खुशमिजाज़ है। इखलाक अच्छा है। ज़माने की सूझबूझ है। उनकी दुकान का एक कोना हमेशा खाली रहता, जिसको वह मौके के हिसाब से काम में लाते थे। जैसे ईद पर वह जगह सेंवईं और बच्चों के खिलौने से सज जाती, तो दीवाली पर पटाखों और दियों से जगमगा जाती। और होली पर रंगों से तो रक्षाबंधन पर राखियों से। इस तरह अब्दुल भाई की यह सदाबहार दुकान चलती रहती। और साथ में इनकी सिलाई मशीन भी। अब्दुल भाई हर दिल अज़ीज़ इंसान थे। क्योंकि यह हर मौके पर सब का साथ निभाते थे। जब मोबाइल चलन में आया। और हर दूसरे हाथ में दिखने वाला मोबाइल हर किसी की चाहत बन गई। चाहत इस लिए कि ज़रूरत का तो पता नहीं मगर दिखाने के लिए बहुतों ने मोबाइल रखना शुरू कर दिया था। अब्दुल भाई ने भी मौका गनीमत जाना। और उनकी दुकान का वह कोना सज गया मोबाइल से। और उन की दुकान पर इस तरह मोबाइल देख कर हर कोई अब्दुल भा...

शाद अब्बासी (एक शख्सियत) | Part 7

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राज़े हयात भी मेरे दस्त हुनर में हैं  बीते दिनों के सारे मनाज़िर नज़र में हैं बचपन से दश्त शौक में गुज़री है ज़िंदगी  कितनी कहानियां मेरे रख्ते सफर में हैं  शाद अब्बासी  जैसा कि आप ने पढ़ा कि शाद अब्बासी को बचपन से ही तालीम का शौक था। इल्म हासिल करने के लिए उन्होंने बहुत मेहनत की। लिखने और पढ़ने की आदत और  शौक ने शाद अब्बासी को एक बार फिर 72 साल की उम्र में आला डिग्री के लिए मजबूर किया। शाद अब्बासी ने  मौलाना आज़ाद नेशनल उर्दू यूनिवर्सिटी से 2011 में 74 साल की उम्र में उर्दू से बी-ए पास किया। इस तरह उनका तालीमी सफर आगे बढ़ा। और फिर उन्होंने पोस्ट ग्रेजुएट का इम्तिहान दिया, और कामयाबी हासिल करते हैं। शाद अब्बासी ने इस उम्र में तालीम हासिल करके यह साबित कर दिया कि पढ़ने की कोई उम्र नहीं होती है। सिर्फ इंसान में शौक और हौसला होना चाहिए।  इसी के साथ शाद अब्बासी आगे बढ़ते वक्त और हालात के बदलते तेवर और तकनीक की उड़ती उड़ान के साथ वह आगे बढ़ते रहे। कभी कलम से लिखने वाले शाद अब्बासी ने कम्प्यूटर को अपना राहगीर बना दिया। जो उनके इशारे पर उनके साथ चलने लगा। इसी...

शाद अब्बासी ( एक शख्सियत) | Part 6

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   बात बनती नहीं ऐ शाद गिरां लफ्ज़ो से शेर अच्छा है वही दिल को जो बेकल कर दे -शाद अब्बासी  शाद अब्बासी की पब्लिश किताबों के नाम..... लफ्ज़ बा लफ्ज़...... नज़्मों का मजमूआ सफीन-ए- गज़ल....... ग़ज़लों का मजमूआ नेवाए फारानां........ नअत व मुनकबत बिखरे मोती......... गज़लें, नज़्में और कतआत मदनपूरा की अंसारी बिरादरी, समाजी पस मंज़र भाग 1 (नसर)  मदनपूरा की अंसारी बिरादरी, समाजी पस मंज़र भाग 1 (नसर)  इस्लाही कहानियां...... बच्चों के लिए  शादी रहमत या ज़हमत दुनिया भर की कहानी..... बच्चों के लिए (तर्जुमा) मदनपूरा की अंसारी बिरादरी समाजी पस मंज़र ( हिंदी भाषा में) हुरफो नवां....... गज़लें, नज़्में और कतआत इस के इलावा शाद अब्बासी की अप्रकाशित पुस्तकों में "मदनपूरा की अंसारी बिरादरी भाग 3" और "गहर हाये गुमशुदा", जिस में बनारस के आठ मरहूम बुज़ुर्ग शोरा के हालात और नमूने कलाम का तज़किरा है। और एक किताब "आईनए बनारस" के नाम से उन्होंने तसनीफ की है। जिस में बनारस के तमाम बिरादरियों और फिरकों की रसूमात का ज़िक्र है। यह किताब 2013 में मुकम्मल हुए। कौमी कौनसिल बराये फरोग उर्द...

शाद अब्बासी (एक शख्सियत) | Part 5 | Shad Abbasi

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साये में सब रहने वाले, पहरों उन में जलता कौन मेरे शोला राज़े फन से बिखरे मोती चुनता कौन -शाद अब्बासी  शाद अब्बासी की शायरी उनके कलाम और मुज़ामीन मुल्क के मुख्तलिफ किताबों और अखबारात में प्रकाशित हुए। रोज़नामा कौमी मोर्चा में वह ईद कहां से लाऊं। जिस में उन्होंने बचपन की ईद की यादों का तज़किरा किया है। सालार बंगलौर कर्नाटक के संडे ऐडिशन में "रहीमा" जो लड़कियों के लिए इस्लाही कहानी पर मुशतमिल है। और "आम (टिकोर से अमावट तक)" जो एक मालूमाती मज़मून है। रोज़नामा आवाज़ मुल्क वाराणसी में"ईद वही खुशियां कम" इसमें उन्होंने बदलते हुए हालात का मुवाज़िना किया है। और "दीवाली" यह दीवाली से मुतअल्लिक़ मालूमाती मज़मून है। इसी तरह शाद अब्बासी के कलाम छपते रहते। लेकिन कभी उन्होंने उसको बहुत संभाल कर नहीं रखा। उनकी शायरी कागज़ के टुकड़ों, लिफाफों और अखबारात के पन्नों पर बिखरी हुई थी। दोस्तों ने राय दी कि आप की शायरी का एक मजमूआ आना चाहिए। उन के मशवरों पर अमल करते हुए उन्होंने अपनी शायरी का ज़खीरा इकठ्ठा करके लफ्ज़ बा लफ्ज़ के नाम से नज़्मों का पहला मजमूआ 1999 में प्र...

शाद अब्बासी (एक शख्सियत) | Part 3 | Shad Abbasi

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यह ज़िन्दगी भी दी, बचपन दिया, शबाश दिया मेरी हयात में खुशियों का आफताब दिया मिलीं जो नेअमतें उन का नहीं हिसाब कोई  इलाही शाद को तूने तो बेहिसाब दिया  (शाद अब्बासी की किताब हुरफो नवां पेज नं 168) तालीम में दिलचस्पी के साथ-साथ शाद अब्बासी को शायरी से भी लगाव था। अपने इसी शौक के चलते वह अक्सर शायरों के कलाम को पढ़ा करते। अपनी शायरी के शुरुआती दौर को याद करते हुए शाद अब्बासी कहते हैं कि...... "मेरी उम्र तकरीबन चौदह साल की रही होगी। एक रोज़ अपने कमरे में बाआवाज़ बुलंद किसी किताब की नज़्म पढ़ रहा था। मेरे बड़े अब्बा मुहम्मद उमर साहेब अपने कमरे से सुन रहे थे। नज़्म सुनने के बाद मुझे बुलाया और कहा कि मेरे साथ चलो। मैं एक फरमांबरदार बेटे की तरह उनके साथ चल दिये। वह मुझे मुस्लिम हरीरी साहेब के पास ले गये। और उन से कहा कि इन से नज़्म सुनिए। मैंने उन्हें नज़्म के कुछ अशआर सुनाए। उन्होंने फरमाया रोज़ आया करो"। शाद अब्बासी की इस बात से पता चलता है कि उनको बचपन से ही शेर-ओ-शायरी का शौक था। शायरी के शौक की वजह से ही उन के बड़े अब्बा उनको मुस्लिम अल हरीरी साहेब के पास ले गये। जहां पर सिर्फ शे...

शाद अब्बासी ( एक शख्सियत) | Part 4 | Shad Abbasi

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  छलकी है आइने से तबस्सुम की एक किरन  चेहरे पे माह व साल की तहरीर देख कर दिल पर लगी खराश कोई याद आ गई  रोया बहुत जवानी की तस्वीर देख कर  -शाद अब्बासी  वक्त आगे बढ़ता रहा। शायरी के साथ-साथ शाद अब्बासी अपने रोज़गार पर भी ध्यान देते रहे। और फिर उन्होंने पॉलिश का काम छोड़कर रविन्द्र पूरी भेलूपूर बनारस में एक ड्राई क्लीनिंग की दूकान 1964 में खोली। और उस दुकान का नाम मॉडर्न ड्राई क्लीनर्स रखा। दूकान में बरकत हुई। खूब तरक्की की। इस की दूसरी ब्रांच भी बड़े पैमाने पर खोली गई। मगर चंद महीनों के अंदर ही उस नई दुकान में बड़ा नुक्सान हो गया। मजबूरन उन्हें नई दुकान को बंद करना पड़ा। लेकिन मॉडर्न ड्राई क्लीनर्स  तकरीबन बीस साल तक चलती रही। जो शाद अब्बासी के रोज़गार का जरिया रहा। और इसी से इन के घर में खुशियां आईं। कहते हैं ज़िंदगी धूप और छांव का नाम है। मॉडर्न ड्राई क्लीनर्स के बगल में एक कसाब की दुकान थी। उसकी बुरी नज़र शाद अब्बासी की दुकान पर पड़ गई। जिस ने शाद अब्बासी का जीना मुहाल कर दिया। इतना सब करने के बाद भी वह कसाब रूका नहीं। बल्कि उल्टा उन पर मुकदमा दायर कर दिया...

शाद अब्बासी (एक शख्सियत) | Part 2

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ज़मीं ने मुझ को अकेला कभी नहीं छोड़ा  फलक ने साथ निभाया कभी नहीं छोड़ा  हमेशा रहती है नज़रें मेरे तआकुब में  ज़माने ने मुझे तन्हा कभी छोड़ा (शाद अब्बासी की किताब बिखरे मोती पेज नं 156 से) शाद अब्बासी भाग 1 में आप ने उनकी ज़िंदगी के बारे में मुख्तसर बातें पढ़ी। उसे कड़ी में आगे बढ़ते हुए हम शाद अब्बासी की ज़िन्दगी को गहराई से जानते हैं। शाद अब्बासी का असली नाम अबुल कासिम है, तखल्लुस शाद और कल्मी नाम शाद अब्बासी है। इन का जन्म बनारस के मदनपुरा मुहल्ले में हुआ।  बनारस ही की तरह मदनपुरा भी किसी तआरूफ का मोहताज नहीं है। शाद अब्बासी के जन्म की तारीख और सन में इख्तेलाफ है। वह अपनी तारीख पैदाइश और सन को एक लेख में कुछ इस तरह लिखते हैं...... "और हिंदुस्तान से अंग्रेज़ी हुकूमत का सूरज मगरिब की जानिक सियाह चादर में अपना मुंह छुपाने के लिए मजबूर हो चुका था। और अन्करीब थका हारा सूरज फलके हिंद से हमेशा हमेशा के लिए कूच की तैयारी कर रहा था। उन्हीं दिनों 29 अक्टूबर 1939 को मैं आलमे वजूद में आया"।   और यही तारीख उनके दफ्तरी रिकॉर्ड में भी मौजूद है। मगर उन्होंने अपने जन्म की तारी...

शाद अब्बासी ( एक शख्सियत) | Part 1 | Shad Abbasi

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 कुछ ऐसा कर कि ज़माने की गुफ्तगू बन जाए कुछ ऐसा लिख कि किताबों की आबरू बन जाए तेरी तलाश हो तारीख के वर्क की तरह तेरा वजूद तसव्वुर में मुश्क बू बन जाए -शाद अब्बासी  हसीन रातें सुलगती शब भी ले लेना जो मेरी आंखों से टपके गहर भी ले लेना  बिखेर देना मेरे फिक्र व फन को ज़माने में  यह मेरे ख्वाबों की दुनिया यह घर भी लेना -शाद अब्बासी  शाद अब्बासी का ज़िक्र हो। और शहर बनारस का ज़िक्र ना हो، ऐसा भला हो सकता है। शाद अब्बासी का रिश्ता बनारस से बहुत गहरा है। शाद अब्बासी की ज़िंदगी और उनकी शायरी में बनारस का बहुत अहम किरदार है। इस लिए शाद अब्बासी का ज़िक्र करने से पहले शहर बनारस की भी कुछ बातें हो जाएं। गंगा किनारे बसा शहर बनारस अपने आप में मुकम्मल है।  बनारस और बनारस के लोगों के लिए बात करना अपने आप में एक आनंद है। बनारस में जिधर देखो उधर आस्था, प्रेम, सुन्दरता और हुनर दिख जायेगा। बनारस के घाटों की सुंदरता, गंगा का बहाव, कश्तियों का चलना, सुरज का निकलना हर चीज़ का अपना एक अलग महत्व और शान है। और इन्हीं बहुत सारी वजहों से बनारस बहुत खास है। और मशहूर भी है। सुबह तो हर जग...