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गेम ज़िन्दगी है?
गेम हम क्यों खेलते हैं?
गेम खुशी है?
गेम दोस्त है?
गेम को कभी ज़िन्दगी का हिस्सा माना जाता था।
बच्चों को गेम खेलने के लिए कहा जाता था।
अक्सर बच्चे और बड़े मिलकर भी गेम खेलते थे।
वक्त के साथ सब बदल जाता है। यह हम और आप अक्सर सुनते हैं। लेकिन आज हम देखते हैं कि वक्त के साथ चीजें बहुत तेज़ी से बदल रही हैं।
कल गेम क्या था? और क्यों खेलते थे?
कल के गेम में खुशी, तन्दुरूस्ती और मां-बाप का साथ था। शाम हुई नहीं कि बच्चे और बड़े सब कहीं मैदान में, घर के आंगन में या छत पर इकट्ठा हो जाते और गेम शुरू हो जाता था। उस वक्त गेम को गेम कम और खेल ज़्यादा कहा जाता था। कभी आई-स्पाई तो कभी कबड्डी तो कभी कुछ, कुछ समझ नहीं आ रहा तो रेस ही कर लेते। इस के इलावा ताश, लूडो, कैरम तो रोज़ का गेम था ही। कुछ नहीं तो चार लोग एक-एक पेपर लेकर बैठ गये। और उस पेपर पर नाम, शहर, खाना, फिल्म टाइटल देते। गेम का नियम यह था कि चारों खेलने वालों में से एक-एक लोग बारी बारी कोई शब्द बोलेंगे और उस शब्द से सबको हर कॉलम में लिखना रहता था। और उसका एक वक्त होता था कि इतने देर में जो जितना लिख ले उसी हिसाब से उसको प्वाइंट मिलता था। खेलते वक्त मज़ा तो आता ही था बच्चे बहुत कुछ सीख भी लेते थे।
वक्त के साथ-साथ गेम भी बदलते रहे। और उन गेमों ने बहुत आसानी से हमारी ज़िन्दगी में जगह बना ली।
लेकिन फिर गेम बदलते-बदलते हमारी ज़िन्दगी ही बदल गयी। कल जो हम खुली हवा में आसमान के नीचे गेम खेलने के साथ-साथ अपनी सेहत भी बना रहे थे। वहीं आज हम बंद कमरों में अपनी सेहत के साथ-साथ अपनी सोच को भी बिगाड़ रहे हैं।
जहां दो से चार लोग इकट्ठा हुए नहीं कि गेम शुरू। कल के मां-बाप को भी बच्चों को गेम खेलते देख फ़िक्र नहीं होती थी। जैसे कि आज रहती है।
वक्त बदला गेम बदला। आज गेमों की दुनिया हमको किस खतरनाक मोड़ पर ले आयी है यह हम सब बहुत अच्छे से जानते हैं। लेकिन बहुत कुछ जानने के बावजूद भी आज हम इतने मजबूर क्यों हैं। यह सबसे बड़ा विषय है।
पबजी गेम जिसके छोटे बड़े बहुत से दीवाने हैं।
पबजी क्या है? एक आईलैंड जिस पर आप को रहना है। खुद को बचाना भी है और दूसरों को मारना भी है। जिस में एक सेफ जोन होता है। जो धीरे-धीरे कम होते हुए खत्म हो जाता है। उस सेफ जोन को खत्म होने से पहले आप को विजयी होना होता है। और गेम के दीवाने उस झूठी जीत के लिए ना जाने कितनी सच्ची खुशयों को कुर्बान कर देते हैं।
पबजी जैसा गेम बनाने वाले ने क्या सोच कर यह गेम बनाया था। यह बनाने के पीछे बनाने वाले का मकसद क्या था। यह तो बनाने वाला ही सही बता सकता है। लेकिन बनाने वाले ने अच्छी चीज़ नहीं बनायी। यह हम कह सकते हैं।
पबजी भारत में बैन होने से जहां एक वर्ग में उदासी और दुःख है। तो वही दूसरी तरफ खुशी और सुकून भी है।
पबजी को खेलने वाले उसको खेलते समय उसमें इस तरह खो जाते थे कि उन्हें अपने आसपास की भी खबर नहीं होती थी। वह उसी दुनिया के हो कर रह जाते थे। जो दुनिया उनके लिए थी ही नहीं।
आज पबजी के बैन के बाद उसके खेलने वाले उदास और दुःखी हैं। लेकिन ऐसा क्यों है। कि पबजी खेलने वालों के आसपास रहने वाले लोग आज पबजी बैन हो जाने से खुश हैं। आज पबजी के बैन की वजह से बच्चों को दुखी देखकर भी मां बाप खुश हैं। कहते हैं मां बाप बच्चों को दुखी नहीं देख सकते। और वह बच्चों की हर मुराद पूरी करने की कोशिश करते हैं। लेकिन पबजी के बैन से आज मां बाप दुखी नहीं हैं। क्योंकि मां बाप जानते हैं कि आज का यह दुख बच्चों के कल के लिए बेहतर है।
गेम तो मन में ताज़गी और माहौल में खुशी लाता है। लेकिन पबजी जैसा गेम इंसान को थका देता है। खेलने वाले उस गेम ज़ोन से निकल ही नहीं पाता जो ज़ोन उसके किसी काम का नहीं।
क्यों आज पबजी जैसे गेम की वजह से हर रिश्ता प्राभावित है?
क्यों आज पबजी जैसे गेम की वजह से हम हार रहे हैं?
क्यों आज हम पबजी जैसे गेम के आगे हार रहे हैं?
क्या आज हमारे आस-पास कोई ऐसा गेम नहीं जिसको हम कुछ देर खेल कर खत्म कर दें?
आज एक पबजी के बैन होने से ऐसा नहीं है कि पबजी जैसे गेम अब हमारी ज़िन्दगी में नहीं आयेंगे। यह सिलसिला अब खत्म होने वाला नहीं। लेकिन पबजी जैसे गेम से हमको अपने को और अपनों को कैसे बचाना है। यह सबसे बड़ा विषय है।
जीतने की ललक ज़िन्दगी में हो, हारने का डर किसी को ना हो।
गेम खेलें और जीतने की कोशिश भी करें। मगर ध्यान रहे गेम को जीतने में रिश्तों को ना हार जाए।
आज पबजी बैन हो गया तो क्या हुआ। आज भी बहुत सारे गेम हैं। जिनको हम पीछे छोड़ आये हैं। ज़रा एक बार उन गेमों को याद तो करें।
बारिश का पानी काग़ज़ की कश्ती को आज भी ढूंढता होगा। जो कभी बरसात में तैरती थी हमारी वजह से।
पंखे की हवा उन जहाज़ों को कैसे भूल सकता है जो कभी हम अपनी भरी हुई कापी के पन्नों को फ़ाड़ कर बनाते और बड़े शान से उनको उड़ाते थे।
वह रूमाल से आंखों को ढंक कर दोस्तों को पकड़ना, तो कभी कुछ ना समझ आने पर चिड़िया उड़ खेल खेलते हुए नाजाने कितने ही ऐसे जानवरों को भी उड़ा देते जो उड़ना नहीं जानते। और फिर इन छोटी-छोटी बातों पे बड़े-बड़े कहकहे लगा कर ना जाने कितने दुखों को हरा जाते थे। और जीत लेते थे वह हकीकी खुशी जो कभी हमें दुखी नहीं कर सकती।
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