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उड़ान.....

हौसलों से हारी मजबूरियां हज़ारों 



बात हौसलों की जब कहीं भी होती है

ज़िन्दगी आपकी आंखों में तैर जाती है


 65 साल की उम्र में हौसलों को दे रही नई ऊंचाईयां

कहते हैं जिनके हैसले बुलन्द होते हैं वह मुश्किलों में भी आसानियां ढूंढ लेते हैं। फिर वह मुश्किल शारिरिक हो या सामाजिक।

इन्हीं हौसलों की एक मिसाल हैं नईमा जी.......

नईमा जी जो किसी जमाने से इस ज़माने तक अपने हुनर को लेकर बहुत ही मशहूर हैं। बचपन से जिनको सिलाई कढ़ाई का शौक था। और उन का यह शौक सिर्फ शैक तक सीमित नहीं था। बल्कि वह बहुत ही बेहतरीन सिलाई कढ़ाई करती भी थीं। 

वक्त का पहिया चलता रहा। ज़िन्दगी खुशी, दुख और आज़माईशों का सफर तय करती हुई आगे बढ़ती रही। और इन्हीं सफर में जब नईमा जी के पति को एक के बाद एक कई बिमारियों ने घेर लिया। ऐसे वक्त में नईमा जी ने अपने हुनर को अपना पेशा बनाने का फैसला किया। और उन्होंने अपनी कढ़ाई के हुनर को चुना। लेकिन चूंकि हाथ की कढ़ाई में समय और मेहनत बहुत लगती है। इस लिए उन्होंने एक एंब्रॉयडरी मशीन खरीदी। और फिर उस पर एंब्रॉयडरी बनाना सीखा। किसी ट्रेनर या कोर्स के बिना।

और फिर शुरू हो गया उनका काम। जैसे-जैसे लोगों को पता चलता गया। लोग आते गये कस्टमर बढ़ते गये। और फिर उनका काम बढ़ता गया। आर्डर इतना ज़्यादा रहने लगा कि लोग दो-दो महीने पहले ही अपना कपड़ा देकर बुकिंग करा लेते थे। नईमा जी के हौसलों को उनके परिवार ने ही नहीं बल्कि समाज ने भी मान लिया था।

काम बढ़ने की वजह से उन्होंने कई एंब्रॉयडरी बनाने वाले कारीगर को रखा। लेकिन कारीगर उनके मन मुताबिक काम नहीं कर पाये। इस वजह से वह खुद ही एंब्रॉयडरी करती रहीं। उनकी कलर मैचिंग और डिज़ाइन के लोग दीवाने थे। क्योंकि वह बारीक से बारीक काम इतनी सफाई से करती थी कि देखने वाला हैरान रह जाता कि यह कम्प्यूटर एंब्रॉयडरी नहीं बल्कि हैंड एंब्रॉयडरी है।

वक्त चलता रहा ज़िन्दगी गुज़रती रही। हर मुश्किलों को नईमा जी अपनी समझदारी और हौसलों से पार करती रहीं।

लेकिन शायद इम्तिहान अभी और थे। कुदरत को नईमा जी को अभी और आज़माना था। 

और फिर नईमा जी को फालिज (paralysis) का अटैक आया। जिसकी वजह से उनका शरीर सुन्न हो गया। लेकिन यह शायद उनका हौसला ही था कि जो वह  इतनी बड़ी बीमारी से बड़े ही हौसलों से लड़ी। क्योंकि डाक्टर को भी पूरी उम्मीद नहीं थी कि यह अब ठीक होंगी भी की नहीं। लेकिन यह शायद नईमा जी की उम्मीद और अल्लाह पर यकीन ही तो था जो नईमा जी को मौत से ज़िन्दगी की तरफ ले आयी। आज भी उनका एक हाथ काम नहीं करता। लेकिन यह नईमा जी का ही हौसला है जो हमेशा शुक्र गुज़ार रहती हैं कि एक हाथ काम नहीं कर रहा तो क्या हुआ दूसरा हाथ तो कर रहा है।

और आज चौदह साल बाद 65 साल की उम्र में नईमा जी ने अपने खाली वक्त को सदुपयोग करते हुए फिर अपने हौसलों से अपना काम शुरू किया। और आज वह शिशुओं (infant) के बहुत ही खूबसूरत और बेहतरीन बिस्तर का सेट, चादर, बच्चों की टॉवल और बोतल कवर से लेकर बच्चों के जूते और चप्पल जो कि बहुत ही खूबसूरत डिजाइन में हर चीज़ तैयार करवाती हैं। और इसको सेल करती हैं। जिसकी डिजाइनिंग और कटिंग वह खुद करती हैं। एक हाथ से काम करती हैं। मगर यह एक हाथ चार हाथ के समान है। इंचीटेप से कपड़ा नापने में दिक्कत होने पर स्केल से कपड़ों को नापती हैं। 

और आज नईमा जी के इस काम से बहुत सी ऐसी महिलाएं जुड़ गयी हैं। जिनके पास कोई काम नहीं था। आज उनके साथ जुड़ी औरतों को ना सिर्फ रोज़गार मिल रहा है। बल्कि नईमा जी के साथ काम करते हुए बहुत कुछ सीखने के साथ-साथ उन औरतों में हौसला और हिम्मत भी आई है। जो शायद बड़ी बड़ी फीस देकर भी कोई नहीं सीख सकता।

सलाम है नईमा जी के हौसलों को जिन्होंने दिखा दिया कि मजबूरियां जितनी भी बड़ी क्यों ना हो हौसलों से हार ही जाती हैं।









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