Aag | poetry | Hindi | AG | Hindi poetry

 



आग

वह आग जले तो उजाला घरों में होता है
वरना बुझे आग तो अंधेरा घरों में हो जाए
वह आग जले तो बुझे पेट की आग
वरना भूखे ही मर ना जाते वह सभी
वह आग ही तो है जो जलते हैं अपनों से
वरना हर कोई मिल-जुल के रहा ना करे
वह आग ही तो है जो जोशे-जुनूं बढ़ाता है
वरना थक-हार के कब के बैठ जाएं ना सभी
वह आग ही तो है जो मुहब्बत में होती है
वरना कोई किसी से क्या प्यार करे
वह आग ही तो है तप के बने सोना जिसमें
वरना सोना भी ना बिकता कोड़ियों में यहां
वह आग ही तो है जो बदले की जलती है
वरना हर शख्स चैन से जीता ना मिले
वह आग ही तो है जो निकल जाए पत्थर से
वरना माचिस की जरूरत किसे है यहां
वह आग ही तो है जो जलाती है तालीम की लै
वरना जिहालत की अंधेरी रात बहुत है यहां
वह आग ही तो है जो दिलों में जलती है
वरना हर शख्स जुदा ना होता किसी से यहां
वह आग ही तो है तो उगलती है ज़ुबां अक्सर
वरना हर बोल ना होती वह मिठास लिए
वह आग ही तो है जो नफरतें बढ़ाती है
वरना यह शहर तो मुहब्बत की मिसालें लिखता 
वह आग ही तो है जो ज्वाला बन के जले है यहां
वरना एक नन्हा सितारा भी कम है क्या किसी से यहां।

-Little_Star



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