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सितारा....

ज़िन्दगी थी कभी अब कहानी लगे 

वह कहानी अधूरी मुकम्मल कहां  

वह कहानी चलो सुन लें एक बार फिर 

एक सितारा वह दिलकश चमकता हुआ 

भीनीं गजरों के जैसा महकता हुआ 

चांदनी रात मानिंद चमकता हुआ  

हर एक अंदाज़ उसका हसीं था बड़ा 

और सजने संवरनें की क्या बात थी 

 रची मेहंदी वह हाथों में दिलकश सजी

थी रहती बालियां वह कानों में दीपक लिए

खनकती चूड़ी खनकती रहती वह हाथों में  

दमकती बिंदी गले में लाकेट, नज़र हटे ना जो जाए उस पर

चमकती नथ बनी हीरा, सजी रहती वह चेहरे पर  

और वह पाज़ेब पैरों में, कदम उठते छन्न छन छन

वह पल्लू शान से सिर पर, चहकते लब हंसी चेहरा 

और वह बाल संवरे से, अदब से बोलना और वह  

गज़ब हाज़िर जवाबी थी, ना जाने कब कहां से एक   

आया था वह झोंका एक, वह झोंका एक तूफां का 

मिनट का खेल कुदरत का, और फिर मिट गया सब कुछ  

मुहब्बत की वह मारी थी, मुहब्बत की वह रानी थी 

मुहब्बत मिल गई उसको, मुहब्बत जी रही थी वह

मुहब्बत में दीवानी वह, मुहब्बत मिट गई लेकिन 

दमकती थी मुहब्बत में, चहकती थी मुहब्बत में  

मगर वह मौत का झोंका, खत्म सब कर गया एकदम 

मुहब्बत ही नहीं है जब, मुहब्बत फिर वह कैसी अब  

कहां अब ज़िंदगी वह है, कहां अब आशिकी उसकी 

चहकते लब हुए खामोश, खनकती भी नहीं चूड़ी 

निकलता है सदा सूरज चमकता चांद फलक पर है 

मगर वह एक सितारा जो चमकता था जमीं पर भी 

मिले है आसमां उसको, मगर फिर भी वह कहती है 

ज़मीं का एक ज़र्रा मैं, नहीं चाहत फलक की अब

-Little_Star










  






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