Shad Abbasi's Shayari Hindi Part 2
🖋️
कब हमारे रास्ते में ग़म के अंगारे ना थे
कब तेरी नज़रों के हम ऐ आसमां मारे ना थे
रास्ता रोके खड़ी रहती थी अक्सर आंधियां
वक्त की आंधी से लेकिन हम कभी हारे ना थे
( शाद अब्बासी की किताब बिखरे मोती पेज नं 166 से)
🖋️
तनहाई में एक आस का दरिया भी कोई हो
टूटी हुई कश्ती का सहारा भी कोई हो
हम पार उतर जायेंगे तूफाने बला में
कश्तिये दिलो जान में अपना भी कोई हो
(शाद अब्बासी की किताब बिखरे मोती पेज नं 162)
🖋️
चल रहा था मैं तो लम्बे रास्ते कटते ना थे
दिल शिकन राही मिले, हिम्मत शिकन पत्थर मिले
इंकलाब आया है ऐसा ज़िंदगी के मोड़ पर
मैं ज़रा ठहरा कहीं तो रास्ते चलने लगे
(शाद अब्बासी की किताब बिखरे मोती पेज नं 162)
🖋️
सब यहां अपना है अपना ही घर लगता है
फिर भी क्यों मुझ को उजाले से डर लगता है
🖋️
छलकी है आइने से तबस्सुम की एक किरन
चेहरे पे माह व साल की तहरीर देख कर
दिल पर लगी खराश कोई याद आ गई
रोया बहुत, जवानी की तस्वीर देख कर
🖋️
थी अजनबी सी आहटें दिलों में इज़तेराब था
ना जाने क्या था शहर में कि भीड़ थी जगह-जगह
🖋️
ना पढ़ सका मैं आज तक तेरे नज़र की चिठ्ठियां
लिखी हुई कहीं-कहीं मिटी हुई जगह-जगह
🖋️
मैं अपने रास्ते पे था वह अपनी राह पर मगर
अजीब इत्तेफाक था नज़र मिली जगह-जगह
🖋️
ज़िंदगी मंज़िल पे आ कर भी ठहरती ही नहीं
ख्वाहिशें रहती हैं सरगरदां मुसाफिर की तरह
सब के शीशे के मकां हैं यार! तेरे शहर में
फिर भी उठते हैं कदम सब के मुहाजिर की तरह
🖋️
करता रहा मैं तुझ से ख्यालों में गुफ्तगू
हुरफे जुनूं के रबत से तहरीर बन गई
लफ़्ज़ों पे मेरे छा गईं पैकर तलाशियां
मैंने गज़ल कही तेरी तस्वीर बन गई
🖋️
ज़िंदा हूं मैं अजीब फरेब व भरम में हूं
सच यह है दरमियान वजूद व उदम में हूं
लग कर किसी फ्रेम में, दीवार पर नहीं
फिर भी मैं ज़िंदगी के किसी म्यूज़ियम में हूं
-शाद अब्बासी
Shad Abbasi's Shayari Hindi (Part 1)
🖋️
सदियों से बेकरार है मेरी सज़ा मगर
मुझ से मेरा कुसूर बताया नहीं गया
Comments
Post a Comment