डोर धड़कन से बंधी | भाग 75 | Dhadkan Season 2 – Door Dhadkan Se Bandhi Part 75 | Hindi Romantic Story
लौट आओ शिवाय…तुम्हारा यह दोस्त बहुत अकेला हो गया है। आदर्श मन ही मन शिवाय को याद करते हैं। और उस रोड पर गाड़ी घुमा देते हैं जहां उन्हें आखरी बार छोड़ा था।
शिवाय को सिर्फ एक झलक देखने के लिए आदर्श हर रोज़ सड़कों पर यूं ही घूमते रहते। लेकिन उन का दोस्त उन्हें कहीं नहीं मिलता।
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जब से शिवाय एक आम इंसान बने थे तो वह आम लोगों की ज़िंदगी को बहुत करीब से देख रहे थे। यह तजुर्बा उन के लिए बिल्कुल नया था। वह बहुत सारे लोगों से मिले थे। लेकिन हमेशा एक बिज़नेस मैन की हैसियत से मिले थे, मगर आज वह एक आम इंसान थे। आज वह सामने वाले से बात करते तो शिवाय सिंह ओबेरॉय बल्कि एक मामूली शिवाय होता। जिसकी शख्सियत भले ही आकर्षित थी, लेकिन उन का पहनावा बिल्कुल आम सा था।
आज भी शिवाय अपनी ड्यूटी खत्म करके यूं ही बाज़ार में घूम रहे थे। लोगों से मिलना उनसे बातें करना शिवाय को अच्छा लगता था। लेकिन एक आम इंसान से बात कर के उन के दुख, मुश्किल और परेशानी देख कर शिवाय को फिक्र हो जाती। हर कोई उलझा हुआ था। हर किसी की अपनी एक अलग परेशानी थी।
और उन परेशानियों में सब से बड़ी परेशानी जो थी वह था पैसा…हर किसी के दुख की वजह कहीं ना कहीं पैसा था। वह हर किसी को तसल्ली देता। और बेहतर से बेहतर राय देता ताकि उन की परेशानी दूर हो जाए।
इसी लिए शिवाय पूरे मुहल्ले में मशहूर हो रहे थे।
इस वक्त भी कुछ लोगों की उलझनों ने उन्हें परेशान कर दिया था। उन्हीं को सोचते हुए शिवाय की नज़र सामने कार से उतरती हुई लड़की पर पड़ती है।
यह तो सबा है…शिवाय हैरान हुए। लेकिन यह किसके साथ है?
शिवाय की नज़र उस पर टिक गई।
सबा के उतरते ही वह गाड़ी आगे बढ़ जाती है।
और सबा भी जैसे ही आगे बढ़ती है उसकी नज़र शिवाय पर पड़ती है। उस के कदम जहां थे वहीं थम जाते हैं। डर उसके चेहरे पर साफ दिख रहा था।
लेकिन शिवाय कुछ बोलने के बजाए खामोशी से अपने रास्ते चले जाते हैं, यूं जैसे उन्होंने उसे देखा ही ना हो।
शिवाय घर पहुंचे तो हैरान रह गए क्योंकि सभी लोग वहां पर एक साथ बैठे थे श्लोका भी वहीं पर थी और माहौल बहुत अच्छा था।
क्या बात है आज माहौल बिल्कुल बदला हुआ है? शिवाय हैरानी से पूछते हैं।
यह सब आप ही वजह से है…हाजी साहेब खुशी से कहते हैं।
मेरी वजह से क्यों? शिवाय हैरान हुए।
मैंने आप को गलत समझा। लेकिन आप सही थे, आपकी वजह से मेरे ग्राहक बढ़ गए हैं। अब कोई मेरी दुकान पर आता है और चप्पल खरीदने के बहाने आप से बात भी कर लेता है। और राहिल ने बताया कि वह आप की मदद से अपना बिजनेस शुरू रहा है। आपका बहुत शुक्रिया… आपका यह एहसान मैं ज़िन्दगी भर नहीं भूलूंगा…कहते-कहते हाजी साहेब की आवाज़ भारी हो गई।
ऐसा कुछ नहीं है। लेकिन आप की दुकान अच्छी चल रही है, इस बात की खुशी है। और रही राहिल की बात..तो वह खुद ही पढ़ा-लिखा समझदार बच्चा है। और ताहिर पहले से ही दुकान को बहुत अच्छे से चला रहा था। यह बच्चे बहुत समझदार हैं, इनका साथ दें। यह बहुत आगे जायेंगे।
कहते ही शिवाय अंदर की तरफ बढ़ जाते हैं।
रूकें…मुझे भी कुछ कहना है…राहिल जल्दी से कहता है। शिवाय जहां थे वहीं ठहर गए।
मुझे मेरा पहला आर्डर मिल गया है। राहिल खुशी से कहता है।
क्या? शिवाय हैरान हो गए। वह राहिल के करीब जाकर उसे गले लगा लेते हैं।
अब फटाफट आर्डर रेडी करो। आर्डर लेट नहीं होना चाहिए।
और पैसों का इन्तेज़ाम? शिवाय को दूसरी फिक्र हुई।
नानू हैं ना…इनका नाम ही काफी है। मुझे हर सामान मिल जायेगा। जिसका पेमेंट मैं पैसा आते ही कर दूंगा। राहिल खुशी से कहता है।
यह तो बहुत अच्छी बात है फिर लग जाओ काम पर… शिवाय उसका कंधा थपथपा कर कहते हैं।
राहिल की बात से हर कोई खुश हो जाता है।
आज बहुत बड़ी खुशी है। राहिल जाओ आइसक्रीम लेकर आओ। हाजी साहेब जेब से पैसा निकाल कर राहिल को देते हैं।
शिवाय और श्लोका दोनों एक-दूसरे को देखते हैं।
मेरे लिए एक कप कॉफी सबा के हाथ की…शिवाय सबा को देखकर कहते हैं।
सबा के चेहरे पर डर साफ दिख रहा था। वह नज़रें झुका गई।
क्यों आइसक्रीम क्यों नहीं? असमा जल्दी से पूछती है।
शिवाय को ठंडी चीजें नुकसान करती हैं इसलिए…
तो फिर कुछ और…राहिल सोचने लगा।
नहीं, हमारी आदत है। मैं आइसक्रीम खाती हूं, और शिवाय साथ में कॉफी पीते हैं। श्लोका मुस्कुराई।
तब ठीक है…वरना अगर तुम भी ना खाती तो मैं मना कर देता। जाओ तुम आइसक्रीम लेकर आओ, और सबा तुम अच्छी वाली कॉफी बना देना।
असमा खाना लगाओ…आज हम सब साथ में खाना खाएंगे। हाजी साहेब आज बहुत खुश थे।
शिवाय फ्रेश होने अंदर चले गए। और श्लोका वहीं पर रूक गई।
खाना खाते ही सब ने आइसक्रीम खाई। और शिवाय ने कॉफी पी। बहुत देर तक सब लोग बैठ कर बातें करते रहे। फिर शिवाय और श्लोका उठ गए।
सबा मेरी रात वाली कॉफी अभी बाकी है। शिवाय सबा को देखकर कहते हैं।
मैं बना दूंगा। राहिल जल्दी से कहता है।
नहीं, आज सबा बनाएगी। तुम अपने आर्डर पर काम करो। कहते ही शिवाय अंदर चले गए। और सबा खामोशी से उठ कर किचन में चली गई।
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पा मैं चाहता हूं कि पूजा भी कभी-कभी हमारे साथ आफिस जाए। डिनर करते हुए आरव पा से कहता है।
और एक नज़र पूजा को देखता है जो खामोशी से खा रही थी।
मैं? पूजा हाथ रोक कर हैरानी से आरव को देखती है।
हां, तुम…
लेकिन मैं क्या करूंगी?
वही जो हम करते हैं।
मुझे कुछ नहीं आता।
कोई बात नहीं हम सिखा देंगे। क्यों पा क्या कहते हैं? आरव पूजा से बोल कर आदर्श से सवाल करता है।
यह तो अच्छी बात है। लेकिन पूजा की मर्ज़ी ज़रुरी है। आदर्श ने फैसला सुनाया।
और मौम आप क्या कहती हैं? आरव मां की तरफ देखता है।
आदर्श सही कह रहे हैं। मुग्धा आदर्श को देख कर कहती है।
मौम आप अपने फ्लावर शॉप पर चली जाती हैं। अब रह गई पूजा… तो तुम्हारा फाइनल हुआ। कल तुम आफिस चलेगी। आरव खुद ही फैसला सुनाता है। और खाना खाने लगता है।
पा…पूजा मदद के लिए आदर्श की तरफ देखती है। आदर्श बेचारगी से कंधे उचका देते हैं।
मौम…पूजा मुग्धा की तरफ नज़र उठाती है।
यह तुम्हारे हस्बैंड का फैसला है। मैं क्या कर सकती हूं। मुग्धा मुस्कुरा कर कहती हैं।
पूजा नाराज़गी से आरव की तरफ देखती है जिसका सारा ध्यान खाने पर था।
वह भी खामोशी से खाना कम्पलीट करने लगती है। खाना खाते ही वह सब हॉल में चले जाते हैं। और बातें करने लगते हैं।
पूजा तुम घर जाना चाहो तो जा सकती हो। मुग्धा उसे उदास देखकर कहती है।
कौन है वहां जो जाऊं? वह दुख से कहती है।
कल चली जाना…प्रेम से मिल लेना।
नहीं मेरा मन नहीं, जिस भाई की वजह से मेरे मौम डैड घर से चले गए। उस भाई से मिलकर दुख और बढ़ जायेगा।
दादू-दादी से मिल आना। मुग्धा जल्दी से कहती है।
दादू का फोन आया था। वह रोज़ मुझे फोन करते हैं। वह आने का बोल रहे थे लेकिन मैंने मना कर दिया।
कहते ही वह उठ कर अंदर चली गई।
इसी लिए मैं इसे आफिस जाने का बोल रहा हूं। ताकि यह बिज़ी रहे। वरना यह ऐसे ही दुखी रहेगी। आरव उन दोनों को देखते हैं।
हूं, इसी लिए तो हम कुछ नहीं बोले। हम समझ गए कि तुम उसे बिज़ी रखना चाहते हो।
थैंक्स…आरव मुस्कुरा कर उन दोनों को देखता है। और उठ खड़ा होता है।
गुड नाईट…आदर्श मुस्कुरा कर कहते हैं।
गुड नाईट कहते ही आरव अंदर चला जाता है।
मुग्धा हम ने कौन से अच्छे काम किए थे जो इतने अच्छा बेटा और बहू मिले? आदर्श मुग्धा को देख कर पूछते हैं।
यह सब आपके कर्म का नतीजा है आदर्श मुझे आप पर गर्व है। मुग्धा उठ कर आदर्श के पास जाकर बैठ जाती है। और गर्व से अपने पति को देख कर कहती है।
मां-बाप की ज़िन्दगी बच्चों पर बहुत असर करती है। अच्छे संस्कार सिखाने से नहीं आते, बल्कि बच्चे जो देखते हैं वही सीखते हैं।
कोई भी घर किसी एक इंसान से नहीं बनता…बल्कि उसे बनाने में घर के हर शख्स का किरदार होता है।
यह घर हम दोनों के प्यार और मेहनत से बना है। और हमारे बच्चे हमारा गुरूर हैं। जब भी कोई हमारे बच्चों की तारीफ करता है। मन खुशी से भर जाता है। आदर्श खुशी से कहते हैं।
और प्रेम? जब कि शिवाय और श्लोका के शिक्षा में कोई कमी नहीं। मुग्धा दुख से कहती है।
उनकी शिक्षा में कोई कमी नहीं है। जवानी का ज़ोश, और मुहब्बत का नशा बहुत खतरनाक होता है।
अगर मुहब्बत इंसान को संवारती है तो यही मुहब्बत इंसान को बर्बाद भी करती है।
शिवाय और श्लोका ने जो शिक्षा अपने बच्चों को दी है। यह कोई ऊपरी परत नहीं जो किसी के बहकावे से उतर जाएगी। शिवाय और श्लोका की शिक्षा उसके मन के अन्दर बहुत अंदर तक है जो कभी नहीं मिट सकती।
प्रेम को बहुत जल्द अपनि गलती का एहसास हो जायेगा। आदर्श यकीन से कहते हैं।
लेकिन उसकी गलती की वजह से शिवाय और श्लोका को दुख और परेशानी मिली। उसका क्या? मुग्धा दुख से कहती है।
दुनिया के हर सच के साथ एक सच यह भी है कि अच्छे लोगों की ज़िंदगी में मुश्किलें ज़्यादा आती है।
मेरा दोस्त यह आज़माइश भी पार कर लेगा। कहते हुए आदर्श का गला भर आया।
मुग्धा आदर्श को गले लगा लेती है।
उसके साथ ज़िन्दगी की ऐसी आदत हो गई थी कि अब एक-एक पल काटना मुश्किल हो रहा है। आदर्श कहते हुए रो पड़ते हैं।
और मुग्धा… उसके पास तो अल्फाज़ ही नहीं थे जो वह तसल्ली दे सके। क्योंकि आदर्श और शिवाय की दोस्ती को सब से करीब से उसी ने देखा था।
एक दूसरे को खुशियां देने वाले दोस्त आज अकेले दुख झेल रहे थे।
जारी है…
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