डोर धड़कन से बंधी | भाग 62 | Dhadkan Season 2 – Door Dhadkan Se Bandhi Part 62 | Hindi Romantic Story
मैं सब कुछ छोड़ के जा रहा हूं। सब कुछ तुम्हारे हवाले करके। तुम शायद सही कह रहे हो…
मुझे सब कुछ बना बनाया मिला था। तो अब मैं खुद को परखने जा रहा हूं।
लेकिन…
जैसे ही मैं खुद को परख लूंगा, मैं वापस आ जाऊंगा।
चलो श्लोका…शिवाय कहते ही श्लोका का हाथ पकड़ते हैं।
लेकिन…श्लोका शिवाय का हाथ हटा देती है।
शिवाय हैरानी से श्लोका को देखते हैं, और खामोशी से तन्हा आगे बढ़ जाते हैं।
आप कहां अकड़ कर जा रहे हैं शिवाय सर…पूरा बैंक तो आपकी पाकेट में है।
काजल एक और तीर चलाती है।
शिवाय पलट कर प्रेम को एक नज़र देखते हैं जो खामोश खड़ा था।
और फिर अपनी पैंट की पाकेट से अपना वालेट निकाल कर वहीं सोफे पर रख देते हैं। और फिर अपना फोन भी वहीं पर रख देते हैं। और आगे बढ़ते हैं।
कुछ सोच कर दो मिनट रूकते हैं। और अपना कोट उतार कर वहीं पास रखे सोफे पर रख देते हैं।
अब इस की भी ज़रूरत नहीं है…
शायद....
कहते ही शिवाय बाहर की तरफ तेज़ी से बढ़ते हैं। क्योंकि अगर वह थोड़ा भी ठहरते तो शायद वह अपने फैसले पर कायम ना रह पाते।
क्योंकि पीछे उनकी श्लोका खड़ी थी।
श्लोका मुझे लगा था कि तुम मेरा साथ दोगी…लेकिन यहां पर मैं गलत साबित हो गया।
खैर कोई बात नहीं अब तुम सिर्फ एक बीवी नहीं हो, बल्कि एक मां भी हो। और इस वक्त तुम्हें अपने बेटे के साथ रहना शायद ज़्यादा सही लगा।
शिवाय मन ही मन खुद को बहलाते हुए आगे बढ़ रहे थे।
उन के मन में बेटे की एक भी बात नहीं थी। उन के मन में तो सिर्फ श्लोका थी, जो इस वक्त पीछे रह गई थी।
श्लोका अगर तुम साथ होती तो शायद मैं खुद को साबित कर दिखाता।
लेकिन यह क्या? मैं तो पहले ही कदम पर हार रहा हूं।
शिवाय सोचते हुए अपनी ही धुन में आगे बढ़ रहे थे।
तभी…गाड़ी के पास पहुंचते ही गार्ड कार का दरवाज़ा खोल देता है।
शिवाय के कदम रुक गए।
ऐसे ही तो होता था। कदम-कदम सुविधाएं थीं। मुंह से बात निकालनी नहीं पड़ती थी। और काम हो जाता था।
नज़रों से खेलता था शिवाय सिंह ओबेरॉय…
गार्ड गेट खोले अदब से खड़ा था।
लेकिन यह क्या…शिवाय सिंह ओबेरॉय के कदम तो बाहर की तरफ बढ़ रहे थे।
गार्ड खामोश खड़ा था, उसकी इतनी हिम्मत नहीं थी कि वह पूछ सकता…सर पैदल कहां जा रहे हैं।
रात बीत रही थी, चांद अपनी मद्धम रोशनी से शायद शिवाय को राह दिखा रहा था।
लेकिन नहीं, यह रोशनी तो ओबेरॉय मेंशन की चमकती लाइटों का कमाल था। जो अपने मालिक की राहों में जल रही थी।
शिवाय के मन में एक उम्मीद जगी…काश प्रेम मुझे रोक ले।
एक आवाज़ दे दो प्रेम…मैं सब कुछ तुम को खुशी-खुशी सौंप दूंगा।
मगर वहां कोई आवाज़ नहीं थी। वहां पर तो मुकम्मल खामोशी थी। एक ऐसी खामोशी जैसे वहां पर कोई था ही नहीं।
शिवाय गेट तक पहुंचते ही थक चुके थे। उन्हें ऐसा लगा जैसे बरसों का सफर तय करके आयें हो।
मगर नहीं अभी तो सफर की शुरुआत है।
अपनी सोच पर शिवाय खुद ही मुस्कुरा दिए।
तभी कोई पीछे से उनके कंधे पर शाल डालता है।
श्लोका…शिवाय के कदम रुक जाते हैं, उनके होंठ हिलते हैं।
श्लोका धीरे से शिवाय का हाथ थाम कर आगे की तरफ कदम बढ़ा देती है।
शिवाय के कदम भी उसी के कदम के साथ उठ जाते हैं।
दोनों की नज़र सामने थी।
मेन रोड पर शिवाय आगे बढ़ते जा रहे थे। श्लोका खामोशी से साथ चल रही थी।
जिस के कदम हमेशा मखमल पर पड़े हों, वह आज सड़क के पत्थरों को मात दे रहा था।
तभी एक गाड़ी हॉर्न के साथ उन के पास आकर रुक जाती है।
यह इतनी रात को और इस तरह कहां जा रहे हैं? आदर्श गाड़ी से निकल कर हैरानी से पूछता है।
कुछ नहीं ऐसे ही थोड़ा वॉक पर निकले थे।
शिवाय मुस्कुरा कर कहते हैं।
गाड़ी में बैठें पहले फिर बात करते हैं।
आदर्श बहुत सख्ती से हुक्म देता है।
शिवाय और श्लोका खामोशी से गाड़ी में पीछे बैठ जाते हैं।
वह जानते थे आदर्श को, वह शिवाय के कुछ कहे बिना उसकी बात समझ जाते थे।
और आज तो शिवाय की हालत ही कुछ और थी।
कहां चलें? गाड़ी स्टार्ट करके आदर्श मिरर में शिवाय को देख कर पूछते हैं।
कहीं भी…कहते ही शिवाय पीछे सिर टिका कर आंख बन्द कर लेते हैं।
शायद वह कुछ देर सुसताना चाहते थे। क्या पता आगे के सफर में मौका मिले ना मिले।
जारी है…
डोर धड़कन से बंधी भाग 63
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