डोर धड़कन से बंधी | भाग 5 | Dhadkan Season 2 – Door Dhadkan Se Bandhi Part 5 | Hindi Romantic Story
वह कैसे ऐसी बातें कर गई। और मैं खामोशी से सुनता रहा।
वरना कोई इस तरह की बातें उस से नहीं करता है। क्योंकि हर कोई जानता है कि मैं श्लोका के सिवा किसी और का नाम सुनना भी नहीं चाहता हूं।
कल मैं इसे अच्छे से समझा दूंगा। यही सोचते हुए शिवाय लेट गये।
बहुत कोशिश करने के बाद भी शिवाय को नींद नहीं आ रही थी। बार-बार शिवाय के सामने शिवन्या का चेहरा आ रहा था।
शिवाय उलझ जाते हैं। और उठ कर बैठ जाते हैं। श्लोका तुम कहां हो? प्लीज़ आ जाओ। तुम्हारा शिवाय बहुत अकेला है। मैं तुम को ढूंढ-ढूंढ कर थक गया। लेकिन तुम नहीं मिली।
प्लीज़ तुम अचानक से आ जाओ....और मुझे खुशी दे जाओ। बिल्कुल उसी तरह जिस तरह तुम पहली बार गांव से आई थी। और आते ही मेरे दिल को धड़का गई थी। और मुझे बहुत सारी खुशियां दे गई थी।
श्लोका प्लीज़ तुम मुझे गलत मत समझना। पता नहीं कैसे शिवन्या को देख कर मेरा दिल धड़क उठा। लेकिन मैं ऐसा नहीं चाहता। वह बार-बार मेरे सामने आ जाती है। और उस के आते ही मुझे तुम याद आ जाती हो।
शिवाय दोबारा लेट जाते हैं। लेकिन नींद उन की आंखों से कोसो दूर थी।
सुबह शिवाय देर से सोकर उठे। जैसे ही बाहर आये शिवन्या ने नाश्ता लगा दिया। और खुद भी बैठ कर नाश्ता करने लगी।
तुम कर लेती नाश्ता। शिवाय ने एक नज़र उसे देख कर कहा। और फिर दोबारा उसे देखने लगा। ना जाने क्यों उसे उस में श्लोका नज़र आ रही थी।
शिवन्या ने भी शिवाय की तरफ देखा। दोनों की नज़र मिली। लेकिन दोनों ने ही नज़र नीची कर ली।
नाश्ता करते ही शिवाय बाहर चले गए। शिवन्या चाय लेकर बाहर गई। और शिवाय को देकर कहती है।
मुहब्बत का इज़हार कर देना चाहिए। अच्छा लगता है। खुद को भी और सामने वाले को भी।
यह तुम किस के मुहब्बत की बात कर रही हो?
शिवाय ने बहुत शांति से पूछा।
हमारी मुहब्बत.... शिवन्या अपने और शिवाय की तरफ इशारा करके कहती है।
फालतू के ख्वाब देखना बंद करो। और कायदे से रहो। वरना तुम नहीं जानती मैं क्या कर सकता हूं।
अगर मैं तुम को रख सकता हूं। तो तुम को यहां से निकाल भी सकता हूं।
शिवाय बहुत गुस्से से कहते हैं।
अपने घर से निकालने का अधिकार हो सकता है। लेकिन दिल से कैसे निकालेंगे।
शिवन्या बहुत सुकून से कहती है। और अंदर अपने रूम में चली जाती है। और शिवाय उसे जाता हुए देखते रह जाते हैं।
चाय पीते ही शिवाय आफिस चले जाते हैं। और थोड़ी देर में ही आदर्श शिवाय के सामने थे।
क्या हुआ ऐसे क्या देख रहे हो? आदर्श शिवाय से दूसरी बार यह पूछ रहा था। क्योंकि वह जब से उसके केबिन में आया है तब से शिवाय खामोशी से उस की तरफ देख रहे थे।
कुछ बोलोगे या मैं जाऊं? आदर्श उठ खड़े हुए।
ठीक है जाओ। शिवाय कहते ही लैपटॉप पर नज़रें जमा देते हैं।
अब देखने की बारी आदर्श की थी। वह हैरान हो रहा था कि जब बात ही नहीं करना था तो फिर बुलाया ही क्यों? और यही सोचते ही आदर्श बाहर निकल जाते हैं।
आदर्श के जाते ही शिवाय लैपटॉप से नज़र हटा कर आंख बन्द कर लेते हैं।
आंख बन्द करते ही शिवाय के सामने शिवन्या का चेहरा और उसकी बातें थी। जिसे वह नज़र अन्दाज़ करना चाह रहग था। लेकिन बार-बार उसके कानों में शिवन्या के अल्फाज़ गूंज रहे थे।
एक बार फिर वह काम में ध्यान लगाने की कोशिश करता है। क्योंकि थोड़ी देर बाद मीटिंग थी।
आदर्श अपने केबिन में बैठे सोच रहे थे कि कोई तो बात है जो शिवाय कहना चाह रहे थे मगर कह नहीं पाये। ऐसी क्या बात हो सकती है। आदर्श की सोच इसी पर अटकी हुई थी।
आदर्श जानते थे कि शिवाय उससे हर बात शेयर करते हैं।अगर कुछ बात है तो शिवाय मुझे ज़रूर बताएंगे। आज नहीं तो कल यही सोचते हुए आदर्श दुबारा काम करने लगते हैं।
क्या बात है आज आफिस में ही रहने का इरादा है क्या? शिवाय के केबिन में आकर आदर्श बैठते हुए कहते हैं।
क्या टाइम हुआ? शिवाय ने घड़ी देखी। नौ बज गये। पता ही नहीं चला। शिवाय को हैरत हुई।
कौन सी यह नई बात है। जो इतना हैरान हो रहे हो? यह तो तुम्हारा रोज़ का काम है। गार्ड जी की तो आदत हो गई है तुम्हारा इंतेज़ार करने की। आदर्श ने मुस्कुराते हुए कहा।
और तुम क्या कर रहे हो? शिवाय ने यूं ही कर पूछ लिया।
मैं भी अपने महबूब का इंतेज़ार कर रहा था कि कब वह अपना दीदार कराएं। और हम महबूब का चेहरा देख कर अपने घर जाएं। आदर्श ने एक अदा से कहा।
जिस की बात और अदा पर शिवाय मुस्कुरा उठे।
ब्यूटीफुल...इसी मुस्कुराहट के लिए तो मैं तरस रहा था। आदर्श ने एक बार फिर मस्ती की।
अब तुम जाओगे या मैं कुछ करुं? शिवाय ने मुस्कुराते हुए कहा।
चलो चलते हैं। आदर्श उठ गये।
शिवाय भी लैपटॉप बन्द करने लगे।
अरे सुमन तुम? उसी वक्त सुमन आ जाती है।
हां, तुम्हारे पास ही आई थी। सोचा पहले आफिस में चेक कर लूं। क्योंकि मुझे पता था कि तुम यहीं मिलोगे। सुमन बैठते हुए कहती है।
ओके मैं चलता हूं शिवाय। आदर्श बाहर निकलने लगे।
हम भी चलते हैं। घर पर बैठ कर बातें करते हैं। मैं आज शिवाय के साथ ही डिनर करुंगी। सुमन भी उठते हुए कहती है।
शिवाय भी उठ जाते हैं।
बाय... आदर्श बाहर निकल जाते हैं।
आदर्श नहीं चलेगा? सुमन आदर्श को जाता देख कर पूछती है।
नहीं, अगर चलना होता तो वह खुद कह देता। हम दोनों फॉर्मेलिटी नहीं निभाते। कहते हुए शिवाय भी बाहर निकल जाते हैं। साथ ही सुमन भी निकल जाती है।
शिवाय घर जाते हैं। अपनी चाबी से लॉक खोल कर वह दोनों अंदर चले जाते हैं। शिवन्या वहीं बैठी हुई थी।
उन को देखते ही शिवन्या अंदर किचन में चली जाती है। शिवाय भी अपने रूम में फ्रेश होने चले जाते हैं। सुमन वहीं ड्राइंग रूम में बैठ जाती है।
शिवन्या खाना टेबल पर लगा देती है। उसकी यह रोज़ की रूटीन थी। शिवाय के आते ही वह खाना लगाने लगती। और फिर शिवाय भी आ जाते।
खाना लगा कर शिवन्या डाइनिंग टेबल पर बैठ जाती है। उसी वक्त शिवाय और सुमन भी आ जाते हैं।
यह भी हमारे साथ डिनर करेगी? सुमन गुस्से से शिवन्या की ओर इशारा करके शिवाय से पूछती है।
हां, शिवाय ने सीधा सा जवाब दिया।
यह आज हमारे साथ डिनर नहीं करेगी। सुमन ने आर्डर दिया।
जारी है.....
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