डोर धड़कन से बंधी भाग 78 | Dhadkan Season 2 – Door Dhadkan Se Bandhi Part 78 | Hindi Romantic Story

तुम्हारी अम्मी की अच्छाई तुम लोगों को कामयाब बना रही। मां को कभी नाराज़ मत करना। 

गलतियां किसी से भी हो सकती हैं। तुम्हारी मां से भी हो सकती है। लेकिन उन की गलतियों के लिए कभी उन को बुरा मत कहना, और ना ही उनसे नाराज़ होना। 

मां बाप हमेशा बच्चों के लिए अच्छा ही सोचते हैं। और कभी-कभी इसी अच्छा के चक्कर में बच्चों के नज़र में बुरे हो जाते हैं।

शिवाय श्लोका को देखकर उन से कहते हैं। और अंदर की तरफ बढ़ जाते हैं। श्लोका भी उठ कर अंदर चली जाती है।

शिवाय… प्रेम को एक दिन अपनी गलती का एहसास ज़रूर होगा। श्लोका शिवाय को दुखी देख कर कहती है।

मुझे खुद से ज़्यादा तुम्हारे लिए दुख होता है। तुम ने अपनी ज़िन्दगी उन पर लुटा दी। अपने बच्चों की अच्छी परवरिश के लिए तुम ने हर मुमकिन कोशिश की।

मगर क्या मिला?…शिवाय की आंख नम हो जाती है।

हम बहुत जल्द वापस जा रहे हैं…तैयार रहना। 

शिवाय के चेहरे की सख्ती देख श्लोका को डर लगने लगा।

टेंशन मत लो, तुम्हारे बच्चों को कोई नुक्सान नहीं पहुंचाऊंगा। 

लेकिन…मेरे लिए सबसे पहले तुम्हारी खुशी है। और अब मैं तुम्हें इस तरह नहीं देख सकता।

मैं ठीक हूं शिवाय…वह उसके कंधे से लग गई।

मुझे माफ कर दो… शिवाय की आंख नम हो गई।

श्लोका शिवाय को गले लगा लेती है।

हमें आए दो महीने हो चुके हैं। मेरे बेटे के लिए इतना सबक काफी है। और अगर वह अब भी ना समझा तो फिर वह कभी नहीं समझ पायेगा।

हम एक के बुरे रवैए के लिए बाकी लोगों के अच्छे रवैए को नहीं भूल सकते। हमारी एक बेटी भी है। जो हमें मिस करती होगी।

मेरे आने से डैड कितना दुखी होंगे,यह सोच कर ही मेरा दिल रो पड़ता है।

और आदर्श…शिवाय मुस्कुरा दिए। 

श्लोका हैरानी से शिवाय को देखती है।

आदर्श के नाम पर आप मुस्कुराए क्यों?

मेरा दोस्त कैसे अपना दिन काटता होगा यह मुझसे ज़्यादा कौन जानता है।

सही कह रहे आप शिवाय…

लेकिन एक बात कहूं?

हूं…

ज़िन्दगी उतनी मुश्किल नहीं है जितनी हमने उसे बना दिया है। श्लोका सोचते हुए कहती है।

मतलब?

मतलब यह कि हम एक कमरे में रह रहे हैं। और बहुत सुकून से रह रहे हैं। इंसान को जीने के लिए बहुत सारी चीज़ों की ज़रूरत इस लिए पड़ती है क्योंकि हम उस कमी को महसूस करते हैं।

दूसरों की ज़िन्दगी को देखते हुए अपनी ज़िन्दगी को मुश्किल में नहीं डालना चाहिए।

हमारे पास जो है जैसा है उसी में खुश रहना चाहिए।

हां, यह अलग बात है कि आगे बढ़ने की हमें कोशिश ज़रूर करनी चाहिए। लेकिन अपने कल के लिए अपना आज बर्बाद नहीं करना चाहिए।

श्लोका कहकर मुस्कुरा कर शिवाय को देखती है।

तुम बिल्कुल सही कह रही हो। 

लेकिन वक्त बदल रहा है हम में और आज के बच्चों में बहुत फर्क है। हम जिस तरह से ज़िन्दगी जीते थे। और आज जिस तरह जी रहे हैं। अगर आज के बच्चों को ऐसा करना पड़े तो वह एक दिन भी ना रह पाए। 

बिल्कुल सही कह रहे हैं आप।

हमें अपने बच्चों को बहुत मज़बूत और हर तरह के हालात का मुकाबला करने वाला बनाना है।

हमारे बच्चे बहुत अच्छे हैं। हमारी पूजा विदेश से पढ़ कर आ गई लेकिन उस के संस्कार हमेशा उसके साथ रहे। हमारा प्रेम भी समझदार है। लेकिन मुहब्बत में धोखा खा गया। 

उसे सही-गलत सिखाने के लिए मुझे लगता है इतना वक्त काफी है।

उसी वक्त दरवाज़े पर नॉक होता है।

मैं देखता हूं। शिवाय उठ कर दरवाज़ा खोलते हैं।

आप? वह असमा को देख कर हैरान रह जाते हैं।

अंदर आएं…

आप इस रिश्ते के लिए अब्बू को मना कर दें। अंदर आते ही असमा जल्दी से कहती है।

दरअसल शाइस्ता और मेरी ननद का बेटा असलम बचपन से दोस्त हैं। और एक वक्त के बाद यह दोस्ती प्यार में बदल गई।

लेकिन असलम की अभी अच्छी नौकरी नहीं है। इस लिए वह खामोश है। लेकिन उसने मुझ से वादा ले लिया है कि मैं शाइस्ता की शादी उसी से करूं। उस के ऊपर दो बहनों की ज़िम्मेदारी भी है। 

असमा सारी बातें बताती है।

ठीक है मैं सोचता हूं कुछ… लेकिन आपको एक काम करना होगा।

क्या? असमा घबरा कर पूछती है।

आप अपनी ननद और उनके बच्चों को घर पर बुलाएं। पहले मैं उन से मिलूंगा। उस के बाद ही कोई फैसला होगा। शिवाय फैसला सुनाते है।

ठीक है मैं देखती हूं उनको बुलाने का।

और सबा?

शिवाय ने जानना चाहा।

उस के कालेज में कोई लड़का उसे पसंद करता है लेकिन वह बहुत अमीर है। 

वह सबा से शादी करना चाहता है। वह हमारे बराबरी का तो नहीं है। लेकिन मैं अभी सबा का रिश्ता नहीं करुंगी। मैं अब लड़के का इंतेज़ार करूंगी कि वह अपनी बात पर कितना सच्चा है।

यह सारी बातें आपको…

हां यह सारी बातें मेरी बेटियों ने मुझे बताईं। मैं उन की मां ज़रूर हूं। लेकिन दोस्त भी हूं। असमा गर्व से कहती हैं।

यह तो बहुत अच्छी बात है। सुनकर खुशी हुई। अब आप जाएं सुकून से सो जाएं। श्लोका मुस्कुरा कर कहती है।

असमा बाहर चली जाती है।

इसे कहते हैं संस्कार…शिवाय मुस्कुराए।

श्लोका भी मुस्कुरा दी। और कॉफी का मग शिवाय की तरफ बढ़ा देती है।

अगला दिन बहुत ही बहुत ही भागदौड़ वाला रहा। राहिल का पहला आर्डर तैयार होकर आ गया था। हर कोई मिल कर पैकिंग कर रहा था। 

शिवाय एक-एक बात सब को बता रहे थे कि कैसे फोल्ड करना है, कैसे रखना है। श्लोका भी वहीं बैठ कर उन की मदद कर रही थी।

हाजी साहेब भी रात में दुकान से आकर वहीं बैठ गए। और उन की मदद करने लगे।

लगता है आप किसी फैक्ट्री में काम कर चुके हैं। 

जिस तरह से शिवाय हर काम को बहुत बारीकी से देख रहे थे, उसे देख कर ताहिर कहता है।

लेकिन शिवाय सिर्फ मुस्कुरा कर रह गए।

आधी रात के बाद काम कम्पलीट हुआ।

थके होने के बावजूद हर किसी के चेहरे पर खुशी थी।

वह दोनों भी रूम में चले गये।

थक गए?

हूं… लेकिन जो खुशी आज इन लोगों को काम करते देख कर हुई। वैसी खुशी आज तक नहीं मिली। ऐसे हज़ारों पार्सल हम ने पैक होते देखे हैं। 

लेकिन आज एक अलग ही अनुभव हुआ। यह एक आर्डर इन की आंखों में हज़ारों सपने दिखा गया। आगे बढ़ने और कामयाब होने का जुनून, मेहनत और लगन…देख कर दिल खुश हो गया।

हाजी साहेब थके होने के बावजूद मदद कर रहे थे। उस वक्त उन के दिल की खुशी उन के थकन पर भारी पड़ गई।

शिवाय खुशी से कहते हैं।

आप सही कह रहे हैं। असमा को कुछ समझ नहीं आया तो प्रेस ही करने लगी ताकि काम जल्दी से हो जाए। श्लोका को असमा की फुर्ती याद आ गई।

छोटी-छोटी खुशियों में खुशियां ढूंढ़ता मिडिल क्लास आने वाले कल को बेहतर बनाने के लिए जान तोड़ मेहनत करते हैं। कभी इन को अपने मेहनत का फल मिल जाता है तो कभी यूं ही सारी ज़िन्दगी बीत जाती है।

जारी है…

डोर धड़कन से बंधी भाग 77

डोर धड़कन से बंधी भाग 79






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