डोर धड़कन से बंधी भाग | 47 | Dhadkan Season 2 – Door Dhadkan Se Bandhi Part 47 | Hindi Romantic Story
उसके कानों में आग की सिसकारियां और किसी पुराने, दर्दनाक लम्हे की टूटी हुई तस्वीरें गूंज रही थीं।
शेफ अपना काम कर रहे थे। आग एक बार फिर तेज़ हुई।
शिवाय.....
शिवन्या की चींख पूरे हॉल में गुंज गई।
शिवाय और आदर्श उठ कर उसकी तरफ जाते हैं। वह बेहोश हो चुकी थी।
शिवन्या, शिवन्या... आंखें खोलो.... शिवाय उसे आवाज़ देता जा रहा था।
आदर्श गाड़ी निकालो। शिवाय को कुछ समझ ही नहीं आ रहा था कि यह अचानक से बेहोश क्यों हो गई।
होटल के मैनेजर भी आ गये।
शिवाय शिवन्या को गोद में उठा कर बाहर की ओर निकले।
गाड़ी में उस को लिटाकर वह सब जल्दी-जल्दी बैठ जाते हैं।
आदर्श तेज़ चलाओ। शिवाय पीछे बैठ कर शिवन्या का सिर अपनी गोद में रखे उस के सिर पर हाथ फेरते हुए कहते हैं।
लेकिन आदर्श जवाब देने के बजाए पूरा ध्यान ड्राइव पर देते हैं। वैसे भी शिवन्या के बेहोश होने पर उसे टेंशन हो गई थी।
आज डॉक्टर खन्ना भी आ रहे हैं। और आज ही शिवन्या की यह हालत... आदर्श को कुछ समझ नहीं आ रहा था।
हॉस्पिटल पहुंचते ही डॉक्टर ने देखा। और देखते ही उसे आई सी यू में लेकर चले गए।
आदर्श यह ठीक हो जायेगी ना?
शिवाय रोते हुए कहते हैं। कब से वह कंट्रोल किए हुए थे।
लेकिन आदर्श का ध्यान शिवन्या में अटका हुआ था कि ऐसा क्या हो गया जो उसे आई सी यू में लेकर गए हैं। उसे लगा नार्मल किसी वजह से बेहोश हो गई होगी। थोड़ी देर में ठीक हो जायेगी।
आदर्श एक नज़र शिवाय को देखते हैं।
डॉक्टर देख रहे हैं वह ठीक हो जायेगी। उसने तसल्ली दी।
इसे कुछ नहीं होना चाहिए। वरना इस बार मैं मर जाऊंगा। मैं इसे दोबारा नहीं खो सकता। शिवाय रोते हुए कहते हैं।
क्या मतलब? आदर्श चौंके।
यह श्लोका है...
क्या??
आदर्श हैरान हुए।
हां, यह मेरी अपनी श्लोका है। रोते हुए भी शिवाय के होंठों पर मुस्कान आ गई।
आदर्श हैरानी से सिर्फ शिवाय को देख रहे थे। उन की समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या कहें।
श्लोका...? आदर्श ने धीमे स्वर में दोहराया। जैसे खुद से पूछ रहे हो कि यह कैसे मुमकिन है।
शिवाय ने उसकी ओर देखा। हां आदर्श...हां मेरी अपनी श्लोका...जिसे मैंने खो दिया था।
लेकिन शिवन्या... श्लोका....? आदर्श को कुछ समझ नहीं आ रहा था।
तुम कब से जानते हो? आदर्श गुथ्थी सुलझाने लगे।
आज जब वह बेहोश हुई।
क्या मतलब? आदर्श हैरान हुए।
बेहोश होने से पहले उसने मेरा नाम लिया था।
हां तो? आदर्श की हैरानी कम नहीं हो रही थी।
उसने शिवाय कहा था, जबकि वह मुझे मिस्टर ओबेरॉय कहती थी।
शिवाय खुशी से कहते हैं।
इतनी छोटी बात से तुम ने समझ लिया कि यह श्लोका है?
आदर्श बेयकीनी से कहते हैं।
जिस तरह से वह मुझे आवाज़ देकर चींख कर बेहोश हुई। यह श्लोका है। शिवाय ने यकीन से कहा।
आदर्श हैरानी से शिवाय को देखते हैं। यूं जैसे कह रहे हों कि यकीन की कोई ठोस वजह तो बताओ।
चलो मेरे साथ....
आदर्श एक दम से उठ गये। और शिवाय का हाथ थाम कर आगे बढ़ गए।
शिवाय हैरानी से चलते गए।
डाक्टर प्लीज़, हमें दो मिनट का समय दीजिए। हम शिवन्या के साथ दो मिनट बिताकर वापस आ जाएंगे।
आदर्श आई सी यू के गेट पर जाकर डॉक्टर से रिक्वेस्ट करते हैं।
मैं पूछ कर आता हूं। वह चले गये।
ठीक है, आप जा सकते हैं।
और कुछ देर बाद वापस आकर डॉक्टर कहते हैं।
वह दोनों उनके साथ अंदर जाते हैं।
अंदर जाकर डॉक्टर सब को इशारा करते हैं। सब जूनियर डॉक्टर और नर्स डॉक्टर के साथ बाहर चले जाते हैं।
शिवन्या बेसुध दुनिया जहान से बेखबर सफेद चादर में लिपटी लेटी हुई थी।
शिवाय उसकी तरफ बढ़ने लगे।
लेकिन आदर्श ने शिवाय का हाथ पकड़ लिया।
शिवाय हैरानी से आदर्श को देखते हैं।
इसके पैर पर से चादर हटाओ। आदर्श ने शिवाय से कहा।
क्या मतलब? शिवाय हैरान हुए।
मतलब तुम समझ गए हो। पहले चादर हटाओ। आदर्श सख्त हुए।
शिवाय उसके पैर के पास जाते हैं। आदर्श भी साथ होते हैं। लेकिन आदर्श पीछे घूम जाते हैं। और शिवाय का हाथ थाम लेते हैं।
शिवाय चादर पकड़ते हैं। उसके हाथ थर-थर कांप रहे थे। उसका दिल बहुत तेज़ी से धड़क रहा था।
शिवाय..... आदर्श ने धीरे से आवाज़ दी। यू जैसे कह रहे हों चादर हटाओ।
और शिवाय ने एक झटके से चादर पलट दी।
थैंक्स गॉड... शिवाय खुशी से चींखे।
उसकी मुट्ठी कस गई। जिसे आदर्श ने और कस कर पकड़ लिया।
शिवन्या के दोनों घुटनों पर तिल चमक रहा था। शिवाय ने चादर वापस ढंक दी।
आदर्श उसे लेकर तुरंत बाहर निकल गये।
और बाहर जाते ही....
आदर्श शिवाय को गले लगा लेते हैं।
गले लगते ही शिवाय फूट-फूटकर रोते हैं। यूं लग रहा था जैसे बरसों से रूके आंसुओं को आज रास्ता मिल गया हो।
शिवाय की आंखों से बहती हर एक बूंद, दर्द के उन पलों की गवाही दे रहे थे जो उसने खामोशी से झेले थे।
आदर्श ने उसकी पीठ थपथपाई, जैसे कह रहे हों...अब सब ठीक है। अब तू अकेला नहीं है।
कुछ पल बाद, शिवाय खुद को थोड़ा सम्भालते हैं। आंखें पोंछते हुए आदर्श से कहते हैं,
मेरी श्लोका मिल गई।
आदर्श मुस्कुराते हैं, लेकिन उन की आंखें भी नम थी।
उसी वक्त आदर्श का फोन बजता है।
डॉक्टर खन्ना को पहले यहां लेकर आओ। फोन उठाते ही आदर्श कहते हैं।
खुद को संभालो मेरे दोस्त... बहुत बड़ी खुशी मिली है।
आदर्श शिवाय को कंधे से लगा कर कहते हैं। जो अभी भी कांप रहे थे।
और शिवाय मुस्कुरा दिए, लेकिन आंख डबडबा रही थी।
डॉक्टर खन्ना के आते ही आदर्श उन से मिल कर उनको शिवन्या के बेहोश होने के बारे में बताते हैं। वह तुरंत दूसरे डॉक्टर्स के साथ अंदर आईसीयू में चले जाते हैं।
आईसीयू की लाइट अभी भी जल रही थी। अंदर डॉक्टर जांच में जुटे थे।
तभी एक नर्स बाहर आई। कौन है शिवन्या के साथ?
शिवाय और आदर्श दोनों एक साथ आगे बढ़े।
डॉक्टर आप को बुला रहे हैं।
दोनों अंदर गए।
शिवन्या को इस हालत में देखकर मैं समझ गया था कि यह कोई साधारण बेहोशी नहीं है।
डॉक्टर खन्ना गंभीर दिख रहे थे।
क्या हुआ उसे? शिवाय ने तड़प कर पूछा।
इस की याददाश्त नहीं थी। और अब जो हुआ है, वह उसी याददाश्त का असर है।
कोई ऐसा लम्हा, कोई ऐसा ट्रामा, जो दिमाग ने अब तक छिपा कर रखा था। अचानक सतह पर आ गया।
तो....अब? आदर्श ने पूछा।
अब इंतेज़ार करना होगा। अगर वह होश में आती है और पहचानती है तो ठीक वरना....
डॉक्टर खन्ना ने बात अधूरी छोड़ दी।
शिवाय की आंखें फिर से भर आईं। उसने आईसीयू के शीशे से झांक कर देखा... वहां शिवन्या... नहीं श्लोका निढ़ाल पड़ी थी। मगर चेहरा शांत था। मानो कोई लम्बी जंग के बाद नींद में हो।
मैं उसे फिर से खोने नहीं दूंगा, शिवाय ने दृढ़ स्वर में कहा।
आदर्श ने उसके कंधे पर हाथ रखा। तुम अकेले नहीं हो।
तीसरा दिन था.... आईसीयू के बाहर वही बेचैनी, वही खामोशी।
शिवाय ने तीन रातों से अपनी आंखें पूरी तरह बन्द नहीं की थी। वह हर कुछ मिनट में दरवाज़े की ओर देखता, हर बार उम्मीद के साथ... लेकिन हर बार वही सन्नाटा लौट आता।
अंदर अब भी वैसे ही सन्नाटा था।
शिवन्या उसी तरह बेसुध पड़ी थी, पर अब उस की उंगलियों में कुछ हरकत थी।
डॉक्टर ने नब्ज़ चेक की, फिर मुस्कुरा कर बोले...यह अच्छी खबर है...शायद अब होश आने में देर नहीं है।
शिवाय और आदर्श बाहर खड़े सब कुछ देख रहे थे।
शिवाय की आंखें एकटक उसी कमरे की खिड़की पर टिकी थीं।
कुछ घंटे बाद...
मशीनों से आती बीप...बीप....की आवाज़ अब सामान्य थी।
और तभी...
शिवन्या की पलकें धीरे-धीरे फड़कने लगीं।
डॉक्टर और नर्स तुरंत उसके पास गए।
शिवन्या की आंखें अब गहरी होने लगीं थीं, और आंखें हल्के-हल्के खुल रही थीं।
शिवन्या...सुन पा रही हो? डॉक्टर ने पूछा।
शिवन्या की आंखों से आंसू की एक बूंद बह निकली।
ज़ुबां अब भी साथ नहीं दे रही थी, लेकिन उसकी आंखों में सवाल थे.... दर्द था... और शायद.... किसी अपने की तलाश भी।
डॉक्टर बाहर आए।
वह होश में आ गई है... लेकिन कुछ भ्रम की स्थिति में है।
अब इन से मिल सकते हैं लेकिन एक बार में बस एक ही व्यक्ति। और धीरे-धीरे बात कीजिएगा।
डॉक्टर कहते हुए चले जाते हैं।
शिवाय का दिल जोरों से धड़कने लगा।
वो दरवाज़े की तरफ बढ़े।
भीतर पहुंचे।
आगे बढ़े, पर कदम भारी थे।
वह सफेद चादरों के बीच बेहद कमज़ोर-सी पड़ी थी। आंखें खुली थीं, मगर कुछ तलाश रही थीं।
शिवाय की आंखें नम हो गईं।
शिवाय धीरे से उसके पास गए।
शिवन्या ने धीरे से सिर मोड़ा...उसकी आंखें कुछ धुंधली थीं....
पर जब उसने शिवाय को देखा...उसकी पलकें ठहर गईं। थोड़ी देर तक वह यूं ही उसे देखती रही। चेहरा पढ़ती रही।
धीरे-धीरे बहुत मुश्किल से उसके होंठ हिले...
शिव...आय...?
शिवाय की सांसें थम गईं। वह उसका हाथ थाम कर बैठ गए, आंखों से बहते आंसुओं को रोकते हुए बोले...
हां, मैं ही हूं.... शिवाय....तुम्हारा शिवाय।
शिवाय अपनी बेतरतीब होती धड़कनों को संभालते हुए कहते हैं। शिवाय के आंसू रूक ही नहीं रहे थे। लेकिन इस बार यह आंसू खुशी के थे।
वह बड़बड़ाने लगी।
शिवन्या शांत हो जाओ, कुछ मत सोचो अभी! शिवाय ने उसके हाथ को और कस कर पकड़ किया।
उसकी सांसें तेज़ हो गई।
श्लोका....वह चींखी।
शिवाय के हाथ में जैसे किसी ने बिजली भर दी।
तुम.... तुमने क्या कहा?
उसने आंखें खोली। धीरे-धीरे।
मेरा नाम.... श्लोका है, ना? उसकी आवाज़ अब बहुत कोमल थी। जैसे कोई टूटी हुई धुन धीमे-धीमे दोबारा बन रही हो।
शिवाय की आंखें भर आईं। शिवाय ने उसकी हथेली पर अपनी पेशानी टिका दीं।
हां... तुम ही हो श्लोका...मेरी श्लोका।
शिवाय... मैं खो गई थी ना? अब उसकी आंखों में आसूं था।
लेकिन अब मिल गई हो। और इस बार...मैं तुम्हें कहीं नहीं जाने दूंगा।
श्लोका की आंखें भर आईं।
दरवाज़े के पास आदर्श खड़ा था। चुपचाप...मुस्कुराता हुआ।
कुछ रिश्ते वक्त के इंतेज़ार में होते हैं... और जब वह लौटते हैं, तो मुकम्मल हो जाते हैं।
उसने मन ही मन कहा।
जारी है...
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